Book Title: Vir Nirvan Samvat aur Jain Kal Ganana
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre
View full book text
________________
१५६
वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना
हुआ सिद्ध होता है ।'
'जैन गणना में जो वीरनिर्वाण और विक्रम संवत् के बीच में ४७० वर्ष का अंतर माना जाता है वह वस्तुतः सरस्वतीगच्छ की पट्टावली के लेखानुसार निर्वाण और विक्रमजन्म के बीच का अंतर है, विक्रम १८ वें वर्ष में राज्याभिषिक्त हुआ और उसी वर्ष से संवत् प्रचलित हुआ । इस प्रकार वीरनिर्वाण से (४७० + १८ =) ४८८ वर्ष पर विक्रम संवत्सर की प्रवृत्ति हुई, पर जैन-गणना में से उक्त १८ वर्ष छूट जाने से निर्वाण से ४७० वर्ष पर ही संवत्सर माना जाने लगा जो स्पष्ट भूल है ।'
'ब्रह्मा और सीलोन आदि की दंतकथाओं के आधार पर बुद्ध-निर्वाण ई० स० ५४४ के पूर्व होना सिद्ध है, इसलिये वीरनिर्वाण भी इसके पहले ई० स० ५४५ पूर्व मानना युक्तिसंगत है ।'
मि० जायसवाल की प्रथम दलील के उत्तर में हमें यहाँ कुछ भी लिखने की जरूरत नहीं है, क्योंकि इस बात का खुलासा हमने इसी लेख में "बुद्ध की जीवित अवस्था में ज्ञातपुत्र का कालधर्म-सूचक बौद्ध उल्लेख" इस हेडिंग के नीचे कर दिया है ।
दूसरी दलील वीर और विक्रम के अंतर के विषय में है सो यह भी निर्वाण-समय के निर्णय में कुछ भी प्रकाश नहीं डाल सकती, क्योंकि प्राचीन जैन निर्वाण-गणना का संबंध शक संवत्सर के साथ है, न कि विक्रम संवत् के साथ । निर्वाण और शक का ६०५ वर्ष का अंतर जो पुराने समय में था वही आज भी है, इसलिये इस विषय में शंका उठाने का कोई भी कारण नहीं है।
निर्वाण के बाद ४७० वर्ष में विक्रम का जन्म, ८ वर्ष तक बालक्रीड़ा १६ वर्ष तक देश-भ्रमण, २५ वर्ष तक मिथ्या धर्मयुक्त राज्य और ४० वर्ष तक जैन-धर्मयुक्त राज्य करके विक्रम की स्वर्गगति बतानेवाली जो पट्टावली और विक्रम प्रबंध की गाथा'०९ है वह बिलकुल नवीन और दंतकथा
१०९. श्रीयुत जायसवाल ने इस विषय में सरस्वती गच्छ की पट्टावली के जिस उल्लेख का निर्देश किया है वह इस प्रकार है
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org