Book Title: Vir Nirvan Samvat aur Jain Kal Ganana
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre
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वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना
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यह तो पूर्व काल और वर्तमान समय की बौद्ध परंपराओं की बातें हुईं, पर इतर विद्वानों का भी बुद्ध के निर्वाण-समय के विषय में एक मत नहीं है। जिन जिन ने इस विषय पर चर्चा की है, उनमें से अधिक संख्यक विद्वानों ने अपनी अपनी भिन्न राय ही कायम की है ।।
डा० बुल्हर की राय से बुद्ध का निर्वाण ई० स० पूर्व ४८३-२ और ४७२-१ के बीच में स्थिर होता है । प्रो० कर्न के मत से ई० स० पूर्व ३८८ में, फर्गुसन के विचार से ४८१ में, जनरल कनिंगहाम की सम्मति से ४७८ में, मेक्समूलर तथा मि० बैनरजी के कथनानुसार ४७७ में, पंडित भगवान्लाल इंद्रजी के खयाल से ६३८ में, फ्लीट के अन्वेषणानुसार ४८२ में और डा० व्होलर तथा तुकाराम कृष्ण लाड् के निर्णयानुसार ४८३ में और वी० ए० स्मिथ के प्रथम शोध के अनुसार ५४३ में और पिछले शोध के अनुसार ई० स० ४८७ पूर्व महात्मा बुद्ध का परिनिर्वाण समय आता है।
इस प्रकार निर्वाण समय के विषय में कम से कम पंद्रह तरह की मान्यताओं की विद्यमानता में निश्चित रूप से यही मान लेना कि बुद्ध का निर्वाण ई० स० पूर्व ४७७ में ही हुआ था, हमारी समझ में केवल मनस्विता है।
भारतवर्षीय विद्वानों में महावीर निर्वाण-समय के संबंध में सबसे पहले और विवेचना-पूर्वक विचार करनेवाले श्री के० पी० जायसवाल हैं । आपने 'पाटलिपुत्र' 'बिहार-ओरिसा पत्रिका' आदि हिंदी और अंग्रेजी पत्रों में निर्वाण-विषयक अनेक लेख दिए हैं और अपनी यह राय स्थिर की है कि महावीर-निर्वाण ई० स० पूर्व ५२७ या ४६७ में नहीं वरन् ५४५ में हुआ था ।
प्रस्तुत विषय में आपकी दलीलें ये हैं
'शाक्य भूमि के शामगाम में रहे हुए बुद्धने ज्ञातपुत्र का पावा में मरण हुआ सुना । इस मतलब का जो अंगुत्तर निकाय में उल्लेख है वह प्रामाणिक है और इसके अनुसार महावीर का निर्वाण बुद्धनिर्वाण से पहले
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