Book Title: Vir Nirvan Samvat aur Jain Kal Ganana
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre

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Page 173
________________ १५४ प्रसिद्ध चीनी यात्री हुएनत्संग, जो ई०, स० ६३० में यहाँ आया था, अपनी भारतयात्रा के वर्णन में लिखता है वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना 1 " श्री बुद्धदेव ८० वर्ष तक जीवित रहे । उनके निर्वाण की तिथि के विषय में बहुत से मतभेद है । कोई वैशाख की पूर्णिमा को उनकी निर्वाण-तिथि मानता है । सर्वास्तिवादी कार्तिक पूर्णिमा को निर्वाणतिथि मानता हैं । कोई कहते हैं कि निर्वाण काल को १२ सौ वर्ष हो गए । किन्हीं का कथन है कि १५ सौ वर्ष बीत गए । कोई कहते हैं अभी निर्वाण-काल को ९०० वर्ष से कुछ अधिक हुए हैं ।"* इससे मालूम होता है कि हुएनत्संग के समय में बुद्ध निर्वाण - काल के विषय में कम से कम तीन तरह की मान्यताएँ थी, किसी के मान्यतानुसार बुद्ध निर्वाण ई० स पूर्व ५७० (१२०० - ६३० ५७०) वर्ष पर आता था, किसी के विचार से ८७० वर्ष पर और किसी के मत से २७० वर्ष से कुछ ही अधिक समय पर । = बौद्धों के पालिग्रंथ अशोक के राज्याभिषेक से पूर्व २१८ वर्ष पर बुद्ध का निर्वाण होना प्रतिपादित करते हैं, तब दिव्यावदान प्रमुख उत्तरीय बौद्ध ग्रंथ अशोक के पहले १०० वर्ष पर ही बुद्ध का परिनिर्वाण हुआ बताते हैं। चीन के बौद्ध ई० स० पूर्व ६३८ में बुद्ध का निर्वाण होना मानते हैं, और सीलोन, ब्रह्मा और श्याम में बुद्धनिर्वाण ई० स० से ५४४ वर्ष पूर्व हुआ माना जाता है और यही मान्यता आसाम के राज- गुरुओं की भी है । I इन भिन्न भिन्न मतों के देखने पर यही कहना पड़ता है कि बौद्धों के दोनों संप्रदाय बुद्ध के निर्वाण समय को बहुत पहले ही भूल चुके थे । पर, हाँ कहीं कहीं इस विषय की सत्य परंपरा भी मौजूद थी, कि जिसके आधार से बुद्धघोष ने महावंशोक्त निर्वाणसमय - गणना का समंतपासादिका में संशोधन करके निर्वाण समय को ठीक किया है और, जहाँ तक मेरा विचार है, सीलोन ब्रह्मा आदि में जो आजकल बुद्ध - निर्वाण समय माना जाता है वह बुद्धघोष का संशोधित समय ही है । ★ भारतीय प्राचीन लिपिमाला । Jain Education International - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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