Book Title: Vir Nirvan Samvat aur Jain Kal Ganana
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre

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Page 159
________________ वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना आर्य खपट का बलमित्र के राज्य में विचरना कैसे संगत हो सकता है ? सर्व परंपरा, पट्टावलियों और प्रबंधों से ज्ञात होता है कि कालकाचार्य वीर निर्वाण संवत् ४५३ में मौजूद थे और इनके भानजे बलमित्र भानुमित्र भी इसी समय में भरोच तथा उज्जयिनी में राज्य करते थे १९३ यदि बलमित्र भानुमित्र का राजत्वकाल निर्वाण संवत् ३५३ और ४१३ के बीच मान लिया जाय-जैसा कि प्रचलित अशुद्ध गाथाओं के अनुसार आता है-तो कालक और बलमित्र भानुमित्र का समान-कालीनत्व कैसे हो सकेगा ? । ये अनेक विरोध और असंगतियाँ इस भूल के कारण उपस्थित होती हैं जो हमारे संशोधन के बाद नहीं ठहर सकतीं । ऊपर हमने जो भूलसंबंधी तर्क किया है, वह केवल कल्पना ही नहीं है, पर तित्थोगाली पइन्नय के लेख से भी यही प्रमाणित होता है कि इसकी गणनाविषयक गाथाओं में कुछ भूल प्रविष्ट हो गई है, क्योंकि आधुनिक पाठ के अनुसार वीर निर्वाण से शक तक के राजाओं के राजत्वकाल के ५५३ वर्ष ही आते है, पर हमें चाहिए ६०५ वर्ष, क्योंकि इन्हीं गाथाओं में लिखे हुए वर्षों का जोड़ बताती हुई आगे की गाथा में "श्रीवीरमुक्तितः शतचतुष्टये चतुरशीतिसंयुक्ते । वर्षाणां समजायत श्रीमानाचार्यखपटगुरुः ॥७९।। - प्रभावकचरित्रविजयसिंहप्रबंध पृ० ७४ । ९३. कालकाचार्य का भानजा बलमित्र भरोच का राजा था ऐसा प्रभावकचरित्र के निम्न उद्धृत श्लोकों से ज्ञात होता है "इतश्चास्ति पुरं लाट ललाटतिलकप्रभम् । भृगुकच्छं नृपस्तत्र बलमित्रोऽभिधानतः ॥९४॥" --प्रभावकचरित्रपादलिप्त प्र० पृ० ४८ । "तथा श्रीकालकाचार्य स्वस्त्रीयः श्रीयशोनिधिः । भृगुकच्छपुरं पाति, बलमित्राभिधो नृपः ॥३०८॥ -प्र० च० पादलिप्त प्रबंध पृ० ६७ । बलमित्र उज्जयिनी का राजा था यह बात निशीथचूर्णि और कालकाचार्य कथा में लिखी हैं, देखो टिप्पण नं० ४१ में उद्धृत इन ग्रंथों के उल्लेख । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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