Book Title: Vir Nirvan Samvat aur Jain Kal Ganana
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre
View full book text
________________
१५०
वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना
डा० हर्मन याकोबी और इन्हीं के मतसमर्थक डाक्टर जार्ल चारपेंटियर प्रचलित वीर निर्वाण संवत् में से ६० वर्ष कम करके ई० स० पूर्व ४६७ वर्ष पर महावीर का निर्वाण होना बताते हैं ।१०६
इस मत के समर्थक विद्वानों की मुख्य दलीलें ये हैं
(१) "जिन गाथाओं के आधार पर निर्वाण समय का प्रतिपादन किया गया है, उन गाथाओं में बताए हुए राजाओं का और स्थानों का कुछ
भी ऐतिहासिक-संबंध न होने से उनके सत्तासमय के आधार पर की गई निर्वाण-समय गणना सत्य नहीं हो सकती ।'
(२) 'महावीर निर्वाण के बाद ४७० वर्ष पर विक्रम संवत् मानकर जो निर्वाण संवत् माना जाता है वह भी ठीक नहीं हो सकता । क्योंकि उस समय में संवत्सरप्रवर्तक विक्रम नामक किसी व्यक्ति के अस्तित्व का ही इतिहास में पता नहीं है, तो उसके नाम से प्रचलित संवत्सर के आधार पर निर्वाण संवत्सरगणना निर्दोष कैसे हो सकती है ?'
___ (३) बौद्ध साहित्य से बुद्ध और महावीर की समकालीनता सिद्ध होती है, और बुद्ध का निर्वाण ई० स० पहले ४७७ वर्ष पर हुआ था यह बात निश्चित हो चुकी है, अब जो महावीर का निर्वाण प्रचलित परंपरानुसार ई० स० पहले ५२७ वर्ष पर मान लिया जाय तो महावीर के निर्वाणसमय में बुद्ध की अवस्था सिर्फ ३० वर्ष की होगी जिस समय कि उन्हें बोधिज्ञान
१०६. महावीर के निर्वाण समय के संबंध में प्रो० याकोबी ने कल्पसूत्र और सेक्रेड बुक्स ऑफ दी ईस्ट पुस्तक २२ की प्रस्तावना में चर्चा करके निर्वाण समय ई० स० पूर्व ४६७ वर्ष पर स्थापित करने का प्रयत्न किया है, और इन्हीं की दलीलों के आधार पर डा० जार्ल चारपेंटियर ने अधिक विस्तृत निबंध लिख के प्रो० याकोबी के मत का समर्थन किया है । यह लेख इस विषय में आज तक लिखे गए पाश्चात्य विद्वानों के सब लेखों से अधिक विस्तृत है ।
इसके अतिरिक्त डा० हार्नल, गुरिनाट, राइस्, थोमस, आदि ने भी महावीरनिर्वाण समय के विषय में लिखा है पर इनमें से अधिकतर विद्वानों का मत ई० स० ५२७ वर्ष पूर्व निर्वाण मानने के पक्ष में है इसलिये इनकी यहाँ समालोचना करना अनावश्यक है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org