Book Title: Vir Nirvan Samvat aur Jain Kal Ganana
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre
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वालभी - जो युगप्रधान पट्टावलि के नाम से प्रसिद्ध है 1
१७.
आर्य आर्यधर्म
१८.
आर्य भद्रगुप्त
१९.
आर्य वज्र
२०.
आर्य रक्षित
२१. आर्य आनंदिल
२२. आर्य नागहस्ती
२३. आर्य रेवतिनक्षत्र
२४. आर्य ब्रह्मद्वीपक सिंह
वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना
२५.
२६.
२७.
२८.
२९.
३०.
३१.
३२.
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आर्य कंदिलाचार्य
आर्य हिमवंत
आर्य नागार्जुन
आर्य गोविंद
आर्य भूतदिन्न
आर्य लौहित्य
आर्य दूष्यगणि
आर्य देवर्द्धिगणि
८१. युगप्रधान पट्टावली के नाम से प्रसिद्ध जो जो स्थविरावलियाँ आजकल उपलब्ध होती हैं वे सब वालभी वाचनानुयायी युगप्रधान स्थविरावलियाँ हैं, इनमें माथुरी वाचना के प्रवर्तक स्कंदिलाचार्य का नामोल्लेख तक नहीं है । इसमें स्कंदिल और हिमवंत के युगप्रधानत्व समय को भी नागार्जुन के समय में मान लिया मालूम होता है, क्योंकि मेरुतुंग के कथन के अनुसार स्कंदिलहिमवंत और नागार्जुन के मिलकर ७८ वर्ष होते हैं। पर इन पट्टावलियों में स्कंदिलहिमवंत का कुछ भी निर्देश न करके ७८ वर्ष अकेले नागार्जुन के पर्याय के मान लिए गए हैं ।
माथुरी वाचना का अनुसरण करनेवाले देवर्द्धिगणि का भी इसमें उल्लेख नहीं है तथा इस स्थविरावली में आर्य रक्षितजी का युगप्रधानत्व काल निर्वाण संवत् ५८५ से ५९७ तक माना गया है । इन सब बातों का विचार करने के बाद हमने यह निश्चय किया है कि युगप्रधान गंडिका, दुष्षमा संघस्तोत्र आदि में जिन युगप्रधान पट्टावलियों का निरूपण किया गया है वे सब नागार्जुनीय - वालभी वाचनानुगत स्थविरावलियाँ हैं । आर्य सुहस्ती पर्यंत माथुरी थेरावली के साथ इस पट्टावली का कोई मतभेद नहीं है पर उसके बाद कहीं कहीं भिन्नता आ गई है और आर्य रक्षित के पीछे तो इनकी भिन्नता और भी बढ़ गई है । माथुरी की गणना के अनुसार आर्य रक्षित जी २० वें स्थविर थे, वे निर्वाण संवत् ५८४ में स्वर्गवासी हुए और इनके पीछे ३९६ वर्ष में देवद्ध सहित १२ युगप्रधान हुए और देवद्धि ने ९८० में पुस्तकोद्धार किया, पर वालभी परंपरानुसार आर्यरक्षित १९ वें युगप्रधान थे और निर्वाण संवत् ५९७ में वे स्वर्गवासी हुए थे, इनके पीछे ३९६ वर्ष में कालकपर्यंत ८ युगप्रधान हुए और कालकाचार्य के अंतिम वर्ष निर्वाण संवत् ९९३ में वलभी में पुस्तकोद्धार हुआ । माथुरी और वालभी गणना में निर्वाण संवत् विषयक १३ वर्ष का मतभेद था यह बात इसी लेख में आगे जाकर कही जायगी । इसलिये उपर्युक्त माथुरी के ९८० और वालभी के ९९३ वर्ष वस्तुतः एक ही समय के
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