Book Title: Vir Nirvan Samvat aur Jain Kal Ganana
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre

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Page 116
________________ वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना स्थूलभद्र ने उत्तर दिया - यह मैंने श्रुतज्ञान की ऋद्धि बताई है । बहिनों को विदा करके स्थूलभद्र भद्रबाहु के निकट वाचना लेने को गए तब भद्रबाहु ने कहा- 'हे अनगार ! जो तैंने पढ़ा है वही बहुत है, अब तुझे पढ़ने की कोई जरूरत नहीं ।' गुरु के इस वचन से स्थूलभद्र को अपनी भूल का ख्याल आया । वे बहुत पछतावा करने लगे और गुरु के चरणों में वंदन करके अपने अपराध की माफी माँगते हुए कहने लगे - पूज्य क्षमाश्रमण ! यह मेरी पहली ही भूल है, कृपया क्षमा कीजिए, यद्यपि बाकी के पूर्व अब स्वयं विच्छिन्न होने को हैं फिर भी भविष्य के महत्तर स्थविर कहेंगे कि 'स्थूलभद्र ने श्रुतमद किया इससे शेष पूर्वों का नाश हुआ ।' अपने गच्छ के साधुओं ने भी हाथ जोड़कर भद्रबाहु से प्रार्थना की कि अब आप इनको वाचना देने की कृपा करें, ये फिर अपराध न करने की प्रतिज्ञा के साथ आपसे क्षमा माँगते हैं । ९७ स्थूलभद्र और शेष श्रमणगण की प्रार्थना का उत्तर देते हुए भद्रबाहु ने कहाश्रमणो ! तुम अब इस विषय में ज्यादा आग्रह मत करो, मैं वाचना देने से इनकार क्यों करता हूँ इसका कारण सुनो। मैं स्थूलभद्र के अपराध के कारण से नहीं पर भविष्य का विचार करके शेष पूर्वों का प्रचार करना बंद करता हूँ। देखो, राजकुल जैसे शकयल मंत्री के खानदान में जन्मा हुआ स्थूलभद्र जैसा गंभीर पुरुष जिसने बारह वर्ष की संगिनी कोशा के प्रेम का क्षण भर में त्याग कर दिया और नंद राजा से दिए जाते मंत्रीपद को ठुकराकर विरक्तभाव से दीक्षा ग्रहण की, वह भी इस श्रुतज्ञान का दुरुपयोग करने में तत्पर हो गया तो दूसरों की बात ही क्या की जाय ? श्रमणो ! दिन दिन समय नाजुक आ रहा है, मनुष्यों की मानसिक शक्तियों का प्रति समय ह्रास हो रहा है, उनकी क्षमता और गंभीरता नष्ट होती जाती है । इस दशा में अब शेष पूर्वों का प्रचार करने में मैं कुशल नहीं देखता । आचार्य का यह अन्तिम उत्तर सुनकर स्थूलभद्र दीनतापूर्वक कहने लगे- भगवन्, अब कभी पर रूप नहीं बनाऊँगा । आप कहें उन शर्तों पर चलकर भी मैं चार पूर्व जानना चाहता हूँ । अति आग्रह के वश होकर भद्रबाहु ने कहा- स्थूलभद्र ! तू इतना आग्रह करता है तो तुझे ४ पूर्व बता दूँगा । पर उसकी अनुज्ञा (दूसरों को पढ़ाने की आज्ञा ) नहीं दूँगा । तुझे अनुज्ञा मात्र दश पूर्वों की दूँगा, बाकी के चार पूर्व तेरे साथ ही नष्ट हुए समझ ले । उक्त कारण से महावीर के पीछे आठवें पुरुष स्थूलभद्र के साथ चार पूर्वों का नाश हुआ । पाटलिपुत्री वाचना के संबंध में जो जो मुख्य घटनाएँ घटी थीं उनका संक्षिप्त सार वीर - ७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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