Book Title: Vir Nirvan Samvat aur Jain Kal Ganana
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre
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वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना
हम मानते हैं कि इस पद्धति में अन्यान्य स्थानीय राजाओं का राजत्वकाल जोड़ा हुआ है, और इसी कारण से इस परंपरा को "राज्यवंशावली'' अथवा 'राज्यपट्टावली" न कहकर हम 'राजत्व कालगणना' कहते हैं ।
___ एक राजवंश का विच्छेद होने पर उस वंश का राजत्वकाल नए राजवंश के साथ जुड़ सकता है, अथवा, स्थान-परिवर्तन में प्रथम स्थानीय समयगणना नए स्थान के राजत्वकाल के साथ ली जा सकती है,२९ तब क्या कारण है कि भ्रमणशील जैन साधुओं की इस प्रकार की राजत्वकाल-शृंखला की सत्यता में संदेह किया जाय ?
जिस रात में भगवान् महावीर का निर्वाण हुआ उसी दिन अवन्ति में राजा पालक का राज्याभिषेक हुआ था इसलिये निर्वाण के साथ बराबर संबंध जुड़ जाने से इस राजत्व काल को जैनाचार्यों ने अपनी गणना-शृंखला का पहला ऑकड़ा बना लिया ।
पालक वंश के राज्य-काल के साठ वर्ष पूरे होते ही उदायी का मरण हुआ, इसके साथ ही मगध के प्रख्यात शैशुनाग वंश का अंत हुआ।
२९. पुराणों में परीक्षित के जन्म से महापद्मनंद के अभिषेक पर्यंत के १०५० वर्षों की गणना दी है, जिसमें न एक स्थान का पता है और न एक राजवंश का ही। गणना परीक्षित के जन्म-स्थान से शुरू होकर अवन्ति, गिरिव्रज होती हुई पाटलिपुत्र में समाप्त होती है । इसमें एक राजवंश का भी कुछ हिसाब नहीं हैं, परीक्षित, बार्हद्रथ, , प्रद्योत, शैशुनाग प्रभृति अनेक राजवंशों के राजत्वकाल को एकत्र जोड़कर पुराणकारों ने
"यावत् परीक्षितो जन्म, यावन्नंदाभिषेचनम् । एतद्वर्षसहस्रं तु, ज्ञेयं, पञ्चाशदुत्तरम् । ॥१०४॥"
___ -वि० पु० अंश ४ अध्या० २४ पृ० १९९-२०२ । यह १०५० वर्ष का लेखा दिया है । और जहाँ तक मैं जानता हूँ एक स्थान और एक राजवंश से संबंधित न होने के कारण मात्र से इस गणना की सत्यता के विषय में आज तक किसी ने शंका प्रकट नहीं की । जैन गणना भी करीब इसी ढंग पर ऐतिहासिक व्यक्तियों के समय के आधार पर की गई है । उसकी सत्यता में संदेह करने का कोई कारण नहीं है।
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