Book Title: Vir Nirvan Samvat aur Jain Kal Ganana
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre
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वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना
युगप्रधानत्व काल-गणना-पद्धति युगप्रधानत्व काल-गणना से तात्पर्य उन संघस्थविरों के कालनिरूपण से है, जो अपने समय में सर्वश्रेष्ठ और जैन श्रमण संघ के प्रमुख हो गए हैं।
भगवान् महावीर के निर्वाण से शक संवत्सर पर्यंत ६०५ वर्ष में क्रमशः संघस्थविर-पद-प्राप्त २० महापुरुष हुए हैं जिनके गार्हस्थ्य, सामान्य श्रमणत्व और युगप्रधानत्व पर्याय काल का निरूपण "स्थविरावली" अथवा "युगप्रधानपट्टावली" में किया है । यहाँ पर हम स्थविरावली की उन गाथाओं को अवतरित करेंगे, जिनमें क्रमश: युगप्रधानों के नाम और उनके युगप्रधानत्व पर्याय का समय-निरूपण है ।
वे गाथाएँ इस प्रकार हैं"सिरि वीराउ सुहम्मो, वीसं चउचत्तवासजंबुस्स । पभवेगारस सिज्जं-भवस्स तेवीस वासाणि ॥ पन्नास जसोभद्दे, संभूइस्सट्ठ भद्दबाहुस्स । चउदस य थूलभद्दे, पणयालेवं दुपन्नरस || अज्जमहागिरि तीसं, अज्जसुहत्थीण वरिस छायाला । गुणसुंदर चउआला, एवं तिसया पणत्तीसा ॥ तत्तो इगचालीसं, निगोयवक्खाय कालिगायरिओ । अट्ठत्तीसं खंदिल (संडिल), एवं चउसय चउद्दस य ॥ रेवइमित्ते छत्तीस, अज्जमंगू अ वीस एवं 'तु । चउसय सत्तरि चउसय, तिपन्ने कालगो जाओ ।। चउवीस अज्ज धम्मे, एगुणचालीस भद्दगुत्ते अ । सिरिगुत्ति पनर वइरे, छत्तीसं एवं पणचुलसी ॥ तेरस वासा सिरि अज्ज-रक्खिए वीस पूसमित्तस्स । इत्थय पणहिअ छसएसु सागसंवच्छरुप्पत्तो ॥"
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