Book Title: Vir Nirvan Samvat aur Jain Kal Ganana
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre
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वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना
चंद्रगुप्त को भी मौर्य अथवा पाटलिपुत्र का राजा न लिखकर उसे उज्जयिनी का राजा लिखा है५३ ।
चंद्रगुप्त का उल्लेख है । इस लेख के शक संवत् ५७२ के आस पास के होने का अनुमान किया जाता है । यदि यह अनुमान ठीक मान लिया जाय तो यह कहना अनुचित नहीं होगा कि विक्रम की आठवीं सदी के प्रारंभ में ही चंद्रगुप्त के भद्रबाहु का दीक्षित शिष्य होने की मान्यता दिगंबर संप्रदाय में हो चली थी । परंतु यह बात भी भूलने योग्य नहीं है कि इस लेख में न तो भद्रबाहु को श्रुतकेवली लिखा है और न चंद्रगुप्त को मौर्य ।
दिगंबर साहित्य में इस विषय का सबसे प्राचीन उल्लेख हरिषेण कृत 'बृहत्कथा कोष' में पाया जाता है । यह ग्रंथ शक संवत् ८५३ का रचा हुआ है । इसमें श्रुतकेवली भद्रबाहु के मुख से दुर्भिक्ष संबंधी भविष्यवाणी सुनकर उज्जयिनी के राजा चंद्रगुप्त के दीक्षा लेने का उल्लेख है । आगे चलकर चंद्रगुप्त के दशपूर्वधर विशाखाचार्य के नाम से संघ का नायक बनने का उल्लेख भी इस कथा ग्रंथ में किया है । यह सब होते हुए भी चंद्रगुप्त को उज्जयिनी का राजा कहकर कथाकार ने इस कथा की वास्तविकता की सूचना तो कर ही दी । भद्रबाहु के दक्षिण देश में जाने संबंधी और चंद्रगुप्त के उज्जयिनी का राजा होने संबंधी तथ्य से ही यह बात स्पष्ट हो जाती है कि ये भद्रबाहु श्रुतकेवलीभद्रबाहु से भिन्न थे, और चंद्रगुप्त भी पाटलिपुत्र के मौर्य चंद्रगुप्त से भिन्न था ।
पार्श्वनाथ वस्ति में लगभग शक संवत् ५२२ के आसपास का लिखा हुआ एक शिलालेख है। उसमें भद्रबाहु की सूचना से संघ के दक्षिण में जाने का उल्लेख है, पर उस लेख से यह बात स्पष्ट सिद्ध होती है कि जिनकी दुर्भिक्षसंबंधी भविष्यवाणी से जैन संघ दक्षिणापथ को गया था वे भद्रबाहु श्रुतकेवली नहीं पर श्रुतकेवली की शिष्य-परंपरा में होनेवाले दूसरे भद्रबाहु थे जिनकी निमित्तवेत्ता के नाम से प्रसिद्धि हुई थी । देखो उक्त लेख का एक खंड
"+ + + महावीरसवितरि परिनिर्वृते भगवत्परमर्षिगौतमगणधरसाक्षाच्छिष्यलोहार्य - जम्बु-विष्णुदेवापराजित-गोवर्द्धन-भद्रबाहु-विशाख-प्रोष्ठिल-कृत्तिकाय - जयनाम-सिद्धार्थधृतिषेण-बुद्धिलादि-गुरु-परम्परीणवक्क(क)माभ्यागतमहापुरुषसंततिसमवद्योतितान्वयभद्रबाहुस्वामिना उज्जयन्यामष्टांगमहानिमित्ततत्त्वज्ञान त्रैकाल्यदर्शिना निमित्तेन द्वादशसंवत्सरकालवैषम्यमुपलभ्य कथिते सर्वसंघ उत्तरापथाद्दक्षिणापथं प्रस्थितः ।"
५३. देखो भद्रबाहुचरित्र का निम्नलिखित पाठ
"अवंतीविषयेऽत्राथ, विजिताखिलमंडले । विवेकविनयानेक-धनधान्यादिसंपदा ।।५।।
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