Book Title: Vir Nirvan Samvat aur Jain Kal Ganana
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre
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वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना
कोटि के अर्वाचीन ग्रंथों में यह कथा अवश्य उपलब्ध होती है । पर अर्वाचीन दंतकथाओं के आधार पर भद्रबाहु और चंद्रगुप्त को समकालीन मानना युक्तिसंगत नहीं है ।
५१. सोलह स्वप्न - संबंधी कथा की नूतनता उसकी भाषा से तो सिद्ध होती ही है प्रत्युत उसके अभ्यंतर तथ्य से भी यह बात कल्पित साबित होती है । यहाँ पर उसमें से कुछ वृत्तांत के अंश दिए जाते हैं, जिनसे पाठकगण को विश्वास हो जायगा कि वस्तुतः स्वप्न संबंधी कथा आधुनिक कल्पना है ।
(१) "संभूयविजयस्स सीसे जुगप्पहाणे भद्दबाहुनामं अणगारे ।"
(२) "अज्जपभइ कोवि राया संजमं न गिहिस्सइ ।"
(३) "केवलनाणं वोच्छिज्जिस्सई" ।
(४) "चेइदव्वआहारिणो मुणी भविस्संति । लोभेणं मालारोवणउवहाणाइमाईणि बहवो तत्थ पभावा पयाइस्संति ।"
(५) " वइस्स हत्थे मो (?) भविस्सइ तेणं वाणीयगा अणेगमग्गे गिहिस्संति । "
(६) "खत्तियकुमार रायभट्ठा भविस्संति जवणा सव्वं गिन्हिसंति ।"
(७) "तं सुच्चा राया निविन्नकामो पुत्तं रज्जे ठविऊण विरागभावे चारितं पालिऊणं देवलोयं गओ ।"
पहले अवतरण में भद्रबाहु को संभूतविजयजी का शिष्य लिखा है जो कि जैन ग्रंथों से सम्मत नहीं है । भद्रबाहु यशोभद्र के शिष्य और संभूतविजयजी के गुरुभाई I
दूसरे में कहा गया है कि 'अब से कोई राजा दीक्षा नहीं लेगा ।' परंतु आगे जाकर चंद्रगुप्त को ही दीक्षा दिलाई गई है, जो कि 'वदतो व्याघात' है । दूसरे श्वेतांबर साहित्य में यह भविष्यवाणी महावीर के मुख से ही प्रकाशित कराई गई है । अभयकुमार के पूछने पर महावीर ने फरमाया था कि राजा उदायन के बाद कोई मुकुटधारी राजा संयम नहीं लेगा । देखो आवश्यक चूर्णि का निम्नलिखित पाठ -
"अभओ किर सामि पुच्छति को अपच्छिमो रायरिसित्ति' सामिण भणितं उद्दायणो, अतो परं बद्धमउडो न पव्वयति ।"
इससे स्पष्ट है कि भद्रबाहु की यह भविष्यवाणी वास्तव में जैन मान्यता से विरुद्ध अर्वाचीन कल्पना है ।
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