Book Title: Vir Nirvan Samvat aur Jain Kal Ganana
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre
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वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना
दिव्यावदान में लिखा है कि 'राजा अशोक को बौद्ध संघ को सौ करोड़ सुवर्ण का दान देने की इच्छा हुई, और उसने दान देना शुरू किया । ३६ वर्षों में उसने ९६ करोड़ सुवर्ण तो दे दिया पर अभी ४ करोड़ देना बाकी था, तब वह बीमार पड़ गया, जिंदगी का भरोसा न समझकर उसने चार करोड़ पूरा करने के लिये खजाने से कुर्कुटाराम में भिक्षुओं के लिये द्रव्य भेजना शुरू किया ।'
उस समय अशोक के पुत्र कुनाल का पुत्र 'संपदी' नामक राजकुमार युवराज पद पर था । अशोक की दानप्रवृत्ति की बात संपदी को कहकर मंत्रियों ने कहा- राजन् ! राजा अशोक थोड़ी देर का महमान है, वह जो द्रव्य कुर्कुटाराम भेज रहा है, उससे उसे रोकना चाहिए, क्योंकि खजाना ही राजाओं का बल है। मंत्रियों के कहने पर युवराज संपदी ने खजानची को धन देने से रोक दिया । इस पर अशोक अपने सुवर्णमय भोजनपात्र ही कुर्कुटाराम को भेजने लगा, तब अशोक के भोजन के लिये क्रमशः रौप्य, लोह और मार्तिक पात्र भेजे गए, जिनका भी उसने दान कर दिया । उस समय राजा अशोक के हाथ में सिर्फ आधा आँवला बाकी रहा था । राजा बहुत विरक्त हुआ, मंत्रिगण और प्रजागण को इकट्ठा करके वह बोला- 'बोलो इस समय पृथिवी में सत्ताधारी कौन है ?' मंत्रियों ने कहा- 'आप ही पृथिवी में ईश्वरी - सत्ताधारी राजा हैं ।' आँखों से आँसू बहाते हुए अशोक ने कहा- तुम दाक्षिण्य से झूठ क्यों बोलते हो ? हम तो राज्यभ्रष्ट हैं । इस समय हमारा प्रभुत्व मात्र इस अर्धामलक पर है । पास में खड़े आदमी को बुलाकर अशोक ने वह अर्धामलक उसे दिया और कहा- भद्र ! मेरा यह थोड़ा सा काम कर, कुर्कुटाराम जाकर मेरे वन्दन के साथ यह अर्धामलक संघ को भेंट कर ।
भिक्षु संघ ने अशोक का वह आखिरी दान उसकी इच्छा के अनुसार यूप में मिला करके सारे संघ में बाँट दिया ।
राजा ने अमात्य राधगुप्त को बुलाकर कहा - 'बोल राधगुप्त ! इस समय पृथिवी में ईश्वर कौन है ?' विनय के साथ उत्तर देते हुए राधगुप्त ने कहा - ' आप ही तो पृथिवी में ईश्वर हैं ।' यह सुनकर अशोक किसी तरह उठा और चारों ओर नजर फिराकर संघ को नमस्कार कर बोला- 'महाकोश को छोड़कर इस समुद्रपर्यंत महापृथिवी को संघ के लिये अर्पण करता हूँ' इस प्रकार पृथिवी का दान करके राजा कालशरण हो गया । अमात्यों ने जलसे के साथ अशोक के शरीर का अग्निसंस्कार किया और वे मगध के सिंहासन पर संपदी को बिठाने की तैयारी करने लगे, तब राधगुप्त ने कहा- चार करोड़ सुवर्ण के बदले यह पृथिवी अशोक ने संघ को दान कर दी है, इस वास्ते जब तक संघ से यह पृथिवी छोड़ाई नहीं जाती, तब तक इस पर दूसरा राजा नहीं हो सकता । अमात्यों के पूछने पर उसने बताया कि क्यों अशोक ने संघ को पृथिवी दी । तब अमात्यों
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