Book Title: Vir Nirvan Samvat aur Jain Kal Ganana
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre
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वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना
४ वर्ष तक शकों का अधिकार रहने के बाद बलमित्र - भानुमित्र ने उज्जयिनी पर अधिकार कर लिया और ८ वर्ष तक वहाँ राज्य किया,
साह को वहाँ का 'राजाधिराज' बनाया पर वस्तुतः इन दोनों उल्लेखों में कोई विरोध नहीं है, जो सौराष्ट्र का राजाधिराज हुआ होगा वह अवंति का स्वामी तो हुआ ही होगा, क्योंकि चढ़ाई का मुख्य उद्देश्य तो अवंति को सर करके साध्वी को छोड़ाने का ही था ।
४१. मेरुतुंग की विचारश्रेणि में दी हुई गाथा में "सगस्स चऊ" अर्थात् उज्जयिनी में शक का ४ वर्ष तक राज्य रहा । इस उल्लेख से ज्ञात होता है कि उज्जयिनी का कब्जा शकों के हाथ में ४ वर्ष तक ही रहा था । कालकाचार्यकथा की -
"बलमित्त भाणुमित्ता, आसि अवंतीइ रायजुवराया ।
निय भाणिज्जत्ति तया, तत्थ गओ कालगायरिओ ||८४|| "
इस गाथा में और निशीथ चूर्णि के
"कालगायरिओ विहरंतो उज्जेणि गतो । तत्थ वासावासं ठितो । तत्थ णगरीए बलमित्तो राया, तस्स कनिट्टो भाया भाणुमित्तो जुवराया + +' इस उल्लेख में बलमित्र को उज्जयिनी का राजा लिखा है । इससे यह निश्चित होता है कि जिस समय सरस्वती साध्वी के छुटकारे के लिये कालकाचार्य शकों की सेना उज्जयिनी पर ले आए उस समय उज्जयिनी को सर करने के बाद उन्होंने वहाँ के तख्त पर शक मंडलिक को बिठाया था, पर बाद में उसकी शक्ति कम हो गई थी । शक मंडलिक और उस जाति के अन्य अधिकारी पुरुषों ने अवंति के तख्तनशीन शक राजा का पक्ष छोड़ दिया था । देखो व्यवहारचूर्णि का निम्नलिखित पाठ -
"उज्जेणीए गाहा । यदा अज्ज कालएण सगा आणीता सो सगराया उज्जेणीए राय हाणीए तस्संगणिज्जगा 'अम्हं जाती ए सरिसो' त्ति काउं गव्वेणं तं रायं ण सुट्टु सेवंति । राया सि वित्ति ण देत अवित्तीया तेण्णं आढत्तं काउं ते गाउं बहुजणेण विण्णविएण ते णिव्विसता कता, ते अण्णं रायं अलग्गणट्ठाए उवगता ।"
- व्यवहार चूर्णि उद्देशक १० पत्र १७९ ।
उज्जयिनी के शक राजा की इस कमजोर हालत में करीब चार वर्ष के बाद भरोच के बलमित्र - भानुमित्र ने उज्जयिनी पर अपना अधिकार जमा लिया और उसे अपनी राजधानी बनाके वे वहाँ रहने लगे । बलमित्र - भानुमित्र कहीं भरोच के और कहीं उज्जयिनी के राजा कहे गए हैं उसका कारण यही है कि वे पहले भरोच के राजा थे पर शक को हराकर उज्जयिनी को प्राप्त करने के बाद वे उज्जयिनी या अवन्ति के भी
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