Book Title: Vir Nirvan Samvat aur Jain Kal Ganana
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre
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वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना
भरोच में ५२ वर्ष और उज्जैन में ८ वर्ष, सब मिलकर ६० वर्ष तक बलमित्रभानुमित्र ने राज्य किया । यही जैनों का बलमित्र पिछले समय में 'विक्रमादित्य' के नाम से प्रसिद्ध हुआ । इसकी सत्ता के ६० वर्षों से ५ वाँ आँकड़ा पूरा हुआ ।
___ बलमित्र-भानुमित्र के बाद उज्जयिनी के राज्यसिंहासन पर नभ:सेन बैठा२।
नभःसेन के पाँचवें वर्ष में शक लोगों ने फिर मालवा पर हल्ला किया जिसका मालव प्रजाने बहादुरी के साथ सामना किया और विजय पाई। इस शानदार जीत की यादगार में मालव प्रजा ने 'मालव संवत्' नामक एक संवत्सर भी चलाया जो पीछे से विक्रम संवत्' के नाम से प्रसिद्ध हुआ । में है, क्योंकि ४५३ के बाद बलमित्र-भानुमित्र का उज्जयिनी में राज्य हुआ और ४६५ के अंत में उसका अंत, इसलिये इस समय के बीच में किसी समय बलमित्र के कारण से कालकाचार्य उज्जैन से निकले और प्रतिष्ठान में जाकर सातवाहन के कहने से पंचमी से चतुर्थी में पर्युषणा की । सातवाहन का समय भी इस घटना के साथ ठीक मिल जाता है ।
४२. विचारश्रेणी आदि में जो संशोधित गाथाएँ हैं उनमें इसका नाम 'नहवाहन' लिखा है जो गलत है । तित्थोगाली में बलमित्र-भानुमित्र के बाद उज्जयिनी का राजा नभःसेन लिखा है । नहवाहन, जिसके नामांतर 'नरवाहन' और 'दधिवाहन' भी मिलते हैं, भरोच का राजा था । सिक्कों पर इसका नाम 'नहपान' भी मिलता है । प्रतिष्ठान के सातवाहन ने इसके ऊपर अनेक बार चढ़ाइयाँ की थीं । संभव है, बलमित्र-भानुमित्र के उज्जैन में चले जाने के बाद यह नहवाहन भरोच का मंडलिक राजा रहा होगा । ।
४३. 'मालव संवत्' अथवा 'मालवगण संवत्' का नामांतर 'कृतसंवत्' भी है। यह संवत् किस कारण से प्रचलित हुआ इसका स्पष्ट खुलासा अभी तक देखने में नहीं आया परंतु हमारे मत से इसका कारण विदेशियों को जीतकर मालवगण की स्वतंत्रताप्राप्ति के सिवाय और कुछ नहीं हो सकता । इस संवत् संबंधी निम्नलिखित उल्लेख विद्वानों ने ढूँढ़ निकाले हैं
(१) मंदसौर से मिले हुए नरवर्मन् के समय के लेख में -
"श्रीर्मालवगणनाते, प्रशस्ते कृतसंज्ञिते । एकषष्ठ्यधिके प्राप्ते, समाशतचतुष्टये [1] प्रावृक्का (ट्का)ले शुभे प्राप्ते ॥"
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