Book Title: Vir Nirvan Samvat aur Jain Kal Ganana
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre
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वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना
जाय ?' इस पर भी कल्की उन्हें नहीं छोड़ेगा और श्रमण-संघ कई दिनों तक वैसे ही रोका हुआ रहेगा । तब नगरदेवता आकर कहेगा-'अये निर्दय राजन् ! तू श्रमण-संघ को हैरान करके क्यों मरने की जल्दी तैयारी करता है, जरा सबर कर । तेरी इस अनीति का आखिरी परिणाम तैयार है ।' नगरदेवता की इस धमकी से कल्की घबरा जायगा और आर्द्र वस्त्र पहिनकर श्रमणसंघ के पैरों में पड़कर कहेगा 'हे भगवान् ! कोप देख लिया अब प्रसाद चाहता हूँ।' इस प्रकार कल्की का उत्पात मिट जाने पर भी अधिकतर साधु वहाँ रहना नहीं चाहेंगे, क्योंकि उन्हें मालूम हो जायगा कि यहाँ पर निरंतर घोर वृष्टि से जलप्रलय होनेवाला है ।
तब वहाँ नगर के नाश की सूचना करनेवाले दिव्य आंतरिक्ष और भौम उत्पात होने शुरू होंगे कि जिनसे साधु साध्वियों को पीड़ा होगी । इन उत्पातों से और अतिशायी ज्ञान से यह जानकर कि-'सांवत्सरिक पारणा के दिन भयंकर उपद्रव होनेवाला है'-साधु वहाँ से विहार कर चले जायेंगे । पर उपकरण मकानों और श्रावकों का प्रतिबंध रखनेवाले तथा भविष्य पर भरोसा रखनेवाले साधु वहाँ से जा नहीं सकेंगे ।।
तब सत्रह रात दिन तक निरंतर वृष्टि होगी जिससे गंगा और शोण में बाढ़ आएँगी । गंगा की बाढ़ और शोण के दुर्धर वेग से यह रमणीय पाटलिपुत्र नगर चारों
ओर से बह जायगा । साधु जो धीर होंगे वे आलोचना प्रायश्चित्त करते हुए और जो श्रावक तथा वसति के मोह में फंसे हुए होंगे वे सकरुण दृष्टि से देखते हुए मकानों के साथ ही गंगा के प्रवाह में बह जायेंगे । जल में बहते हुए वे कहेंगे-'हे स्वामि सनत्कुमार! तृ श्रमणसंघ का शरण हो, यह वैयावृत्य करने का समय है ।' इसी प्रकार साध्वियाँ भी सनत्कुमार की सहायता माँगती हुई मकानों के साथ बह जायँगी । इनमें कोई कोई आचार्य और साधु साध्वियाँ फलक आदि के सहारे तैरते हुए गंगा के दूसरे तट पर उतर जायँगे । यही दशा नगरनिवासियों की भी होगी । जिनको नाव फलक आदि की मदद मिलेगी वे बच जायेंगे, बाकी मर जायँगे । राजा का खजाना पाडिवत आचार्य और कल्की राजा आदि किसी तरह बचेंगे पर अधिकतर बह जायँगे । अन्य दर्शन के साधु भी इस प्रलय में बहकर मर जायँगे । बहुत कम मनुष्य ही इस प्रलय से बचने पायेंगे ।
इस प्रकार पाटलिपुत्र के बह जाने पर धन और कीर्ति का लोभी कल्की दूसरा नगर बसाएगा और बागबगीचे लगवाकर उसे देवनगर-तुल्य रमणीय बना देगा । फिर वहाँ देवमंदिर बनेंगे और साधुओं का विहार शुरू होगा । अनुकूल वृष्टि होगी और अनाज वगैरह इतना उपजेगा कि उसे खरीदनेवाला नहीं मिलेगा । इस प्रकार ५० वर्ष सुभिक्ष से प्रजा अमन चैन में रहेगी ।
इसके बाद फिर कल्की उत्पात मचाएगा, पाषंडियों के वेष छिनवा लेगा और
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