Book Title: Vir Nirvan Samvat aur Jain Kal Ganana
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre
View full book text
________________
वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना
मिला और वह दृढ़ जैनधर्मी हो गया ।'
राजा श्रेणिक विषयक उपर्युक्त जैन कथाओं का सारांश यही बताता है कि श्रेणिक को पहले बुद्ध का उपदेश मिला था और अपनी पिछली अवस्था में महावीर के उपदेश से वह जैन हुआ था ।
यदि उपर्युक्त घटना के सत्य होने में कोई भी बाधक प्रमाण नहीं है तो इसका अर्थ यही हो सकता है कि करीब ४२ वर्ष की अवस्था में केवल ज्ञान प्राप्त कर भगवान् महावीर जब राजगृह नगर में गए उस समय राजा श्रेणिक वृद्धावस्था को पहुँच चुका था ।
- जैन सूत्रों में महावीर के साथ श्रेणिक-विषयक जितने प्रसंग उपलब्ध होते हैं उनसे कहीं अधिक उल्लेख अभयकुमार और कूणिक संबंधी मिलते हैं, इससे भी यही ध्वनित होता है कि महावीर का केवली जीवन श्रेणिक ने अधिक समय तक नहीं देखा ।
इसी के संबंध में अब हम बौद्ध ग्रंथों के उल्लेखों पर विचार करेंगे।
बौद्ध साहित्य में बुद्ध के प्रतिस्पर्धी तीर्थंकरों का जहाँ जहाँ उल्लेख हुआ है वहाँ वहाँ सर्वत्र निर्ग्रन्थ ज्ञातपुत्र का नाम सबके पीछे लिखा गया है । इसका शायद यही कारण हो सकता है कि उनके प्रतिस्पर्धियों में ज्ञातपुत्र-महावीर सबसे पीछे के प्रतिस्पर्धी थे ।।
१. निम्नलिखित नाम के ६ तीर्थंकर बुद्ध के प्रतिस्पर्धी थे, ऐसा बौद्ध लेखक लिखते हैं- १. पूरणकाश्यप, २. मश्करी गोशालक, ३. संजय वैट्टी पुत्र, ४. अजित केशकंबल, ५. ककुद कात्यायन और ६. निर्ग्रन्थ ज्ञातपुत्र ।
दिव्यावदान में इस विषय का उल्लेख इस प्रकार है
"तेन खलु समयेन राजगृहे नगरे षट् पूर्णाद्याः शास्तारोऽसर्वज्ञाः सर्वज्ञमानिनः प्रतिवसंति स्म । तद्यथा- पूरणः काश्यपो मश्करी गोशालिपुत्रः संजयी वैट्टीपुत्रोऽजितः केशकम्बलः ककुदः कात्यायनो निग्रंथो ज्ञातपुत्रः ।"
-दिव्यावदान १२-१४३-१४४। यही बात क्षेमेंद्र ने "अवदानकल्प-लता'' में इस प्रकार कही है -
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org