Book Title: Vir Nirvan Samvat aur Jain Kal Ganana
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre
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वीर निर्वाण संवत् और जैन काल गणना
हमारे इस विवेचन का प्रयोजन यह है कि अजातशत्रु के मगध का राज्यसिंहासन प्राप्त करने के बाद "महाशिला कंटक" युद्ध हुआ और उसके बाद गोशालक का मरण हुआ, क्योंकि मरते समय कहे हुए आठ चरिमों में वह इस युद्ध को भी गिनाता है, और गोशालक के मरण के उपरांत करीब १६ वर्ष तक महावीर जीवित रहे। इसका तात्पर्य यह निकला कि भगवान् महावीर अजातशत्रु की राज्यप्राप्ति के १६ वर्ष से भी अधिक समय तक जीवित रहे थे और बुद्ध उसके राज्यकाल के ८ वें वर्ष में ही देहमुक्त हो चुके थे।
बुद्ध की जीवित अवस्था में ज्ञातपुत्र के कालधर्म-सूचक बौद्ध उल्लेख भी मिलते हैं । उन्हें भी देखना चाहिए ।
__ऊपर देखा गया है कि महावीर का निर्वाण बुद्ध निर्वाण के पीछे हुआ था, परंतु बौद्धों के "दीघनिकाय" और "मज्झिमनिकाय' में कुछ ऐसे उल्लेख भी पाए जाते हैं, जो बुद्ध के जीवित समय में ही ज्ञातपुत्र महावीर के निर्वाण की ओर संकेत करते हैं । हम उन पाली शब्दों को यहाँ उद्धृत करके देखेंगे कि इनका तात्पर्य क्या है ।
मज्झिमनिकाय में लिखा है
"एक समयं भगवा सक्केसु विहरति सामगामे । तेन खो पन समयेन निग्गन्थो नातपुत्तो पावायं अधुना कालकतो होति । तस्स कालकिरियाय भिन्ननिग्गंथद्वेधिक जाता, भंडनजाता, कलहजाता, विवादापन्ना, अण्णमण्णं मुखसत्तोहिं वितुदंता विहरति ।"
अर्थात् 'एक समय भगवान् (बुद्ध) शाक्य देश के सामगाम में थे तब (उन्होंने सुना कि) पावा में निग्रंथ ज्ञातपुत्र ने काल किया और (उसके
"xxx इमाई अठ्ठ चरिमाइं पन्नवेति, तंजहा- चरिमे पाणे, चरिमे गेये, चरिमे नट्टे, चरिमे अंजलिकम्मे, चरिमे पोक्खलसंवट्टाए महामेहे, चरिमे सेयणए गंधहत्थी, चरिमे महासिला कंटए संगामे अहं च णं इमीसे ओसप्पीणीए चउवीसाए तित्थकराणं चरिमे तित्थकरे सिज्झिस्सं जाव अंतं करेस्संति ।"
- भगवती १५, पृ० ६८० ।
७. मज्झिमनिकाय भाग २, पृष्ठ १४३ ।
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