Book Title: Vir Nirvan Samvat aur Jain Kal Ganana
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre
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वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना
१७. विष्णु, मत्स्य, ब्रह्मांड, वायु और श्रीमद्भागवत इन ५ पुराणों में यह कालगणना दी हुई है, जिसमें विष्णुपुराण और भागवत में प्रत्येक राजा का 'राजत्व काल' नहीं दिया, सिर्फ उनके नाम और उनके वंश का राजत्व काल मात्र बता दिया है। बाकी के ३ पुराणों में प्रत्येक व्यक्ति के नाम के साथ उनके राजत्व काल के वर्ष भी दिए हैं, पर इनमें भी अनेक नामों में और राज्यकाल के वर्षों में एक दूसरे के साथ भिन्नता हो गई है, इसलिये हमने किसी एक ही पुराण के अनुसार कालगणना न देकर सबके ऊपर से अवतारित करके यह सूची दी है। पुराणों के मूलश्लोक इस प्रकार हैं
"अजातशत्रुर्भविता, सप्तत्रिंशत् समा नृपः । चतुर्विंशत्समा राजा, वंशकस्तु भविष्यति ||९||
- मत्स्यपुराण अध्याय २७२ ।
" उदायी भविता तस्मात्त्रयस्त्रिंशत्समा नृपः । स वै पुरवरं रम्यं पृथिव्यां कुसुमाहवयम् ॥ गङ्गाया दक्षिणे कूले, चतुर्थेऽब्दे करिष्यति ॥३१३॥ द्वाचत्वारिंशत्समा भाव्यो, राजा वै नन्दिवर्द्धनः । चत्वारिंशत्त्रयं चैव, महानन्दी भविष्यति || ३१४||" - वायुपुराण उत्तरखंड अध्याय ३७ प० १७५, १७९ । "महानन्दिसुतश्चापि शूद्रायाः कालसंवृतः । उत्पत्स्यते महापद्मः, सर्वक्षत्रान्तकृन्नृपः ॥१३९॥
ततः प्रभृति राजानो, भविष्याः शूद्रयोनयः । एकराट् स महापद्म, एकच्छत्रो भविष्यति ॥१४०॥
अष्टाशीतिं तु वर्षाणि, पृथिवीं पालयिष्यति । सर्वक्षत्रं समुद्धृत्य भाविनोऽर्थस्य वै बलात् ॥ १४१ ॥
ततपश्चात्तत्सुता ह्यष्टौ, समा द्वादश ते नृपाः । महापद्मस्य पर्याये, भविष्यन्ति नृपाः क्रमात् ॥१४२॥
उद्धरिष्यति तान्सर्वान्, कौटिल्यो वै द्विजर्षभः । भुक्त्वा महीं वर्षशतं, नरेन्द्रः स भविष्यति ॥१४३॥
चन्द्रगुप्तं नृपं राज्ये, कौटिल्यः स्थापयिष्यति । चतुर्विंशत्समा राजा, चन्द्रगुप्तो भविष्यति ||१४४|| भविता भद्रसार (वि० पु० बिन्दुसार)) स्तु पञ्चविंशत्समा नृपः ।
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