Book Title: Vir Nirvan Samvat aur Jain Kal Ganana
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre
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वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना
अवश्य है । इस अव्यवस्थित गणना के आधार पर महावीर के निर्वाण समय का विचार करना उचित नहीं है ।
अजातशत्रु अंत तक महावीर का अनुयायी था, २२ उदायी भी परम जैन था । २३ उदायी के उत्तराधिकारी नंद२४ और उनका मंत्रीवंश भी जैन
२२. अजातशत्रु (कोणिक) महावीर का परम अनुयायी था, यह बात औपपातिक आदि जैनसूत्रों से सिद्ध होती है ।
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२३. उदायी महावीर का परम भक्त व्रतधारी श्रावक था । इसने अपनी राजधानी पाटलिपुत्र में जैन- चैत्य बनवाया था और यह अष्टमी चतुर्दशी आदि पर्व तिथियों में पौषध-उपवास भी करता था ऐसा आवश्यक चूर्णि और आवश्यक वृत्ति में लिखा है । देखो आवश्यक वृत्ति पत्र ६८९ ६९० ।
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२४. राजा पद्मनंद और इसके उत्तराधिकारी दूसरे नंद किस धार्मिक मत को माननेवाले थे इसका कहीं स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता तथापि कतिपय पुराणों और इतर ग्रंथों के लेखों से नंदों का जैन धर्मानुयायी होना सिद्ध होता है ।
विष्णुपुराणकार नंद के संबंध में लिखते हैं 'महानंदि का पुत्र शूद्रा - गर्भजात अति लोभी और अति बली परशुराम की तरह सब क्षत्रियों का नाश करनेवाला महापद्म नामक नंद होगा और तब से इस भारत भूमि पर शूद्र राजा होंगे ।'
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"महानंदिनस्ततश्शूद्रागर्भोद्भवोऽतिलुब्धोऽतिबलो महापद्मनामा नंद: परशुराम इवाऽपरोऽखिल क्षत्रान्तकारी भविष्यति ॥२०॥ ततः प्रभूति शूद्रा भूपाला भविष्यन्ति ||२१|| विष्णुपुराण ।
यही बात मत्स्यपुराण के २७२ वें अध्याय के १७ वें और १८ वें श्लोकों में, ब्रह्मांडपुराण म० भा० उपो० पा० ३ के अध्याय ७४ के ३९ वें और ४० वें श्लोकों में और वायुपुराण उत्त० अध्याय ३७ के ३२० वें तथा ३२१ वें श्लोकों में दुहाई है ।
श्रीमद्भागवत द्वादश स्कंध के १ अध्याय के ८ वें श्लोक में लिखा है। क्षत्रियों का नाश करनेवाला महापद्मपति नाम का कोई नंद होगा और तब से शूद्रप्राय अधार्मिक राजा होंगे -
"महापद्मपतिः कश्चिन्नंदः क्षत्रविनाशकृत् ।
ततो नृपा भविष्यंति, शूद्रप्रायास्त्वधार्मिकाः ॥ "
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