Book Title: Vir Nirvan Samvat aur Jain Kal Ganana
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre
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वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना
साथ विवाद ये सब भगवान् महावीर के केवलिजीवन के १४ वें वर्ष के अंत में बनी हुई घटनाएँ हैं, और इन्हीं सब घटनाओं की विकृत सूचना पालिग्रंथों के उक्त उल्लेखों में संगृहीत है ।
'जिस वर्ष में ज्ञातपुत्र के मरण ( मरण की अफवाह ) के समाचार सुने उसके दूसरे ही वर्ष बुद्ध का निर्वाण हुआ' बौद्धों के इस आशय के लेख से हम बुद्ध और महावीर के निर्वाण समय के अंतर को ठीक तौर से समझ सकते हैं ।
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केवल ज्ञान के चौदहवें वर्ष के मार्गशीर्ष मास में श्रावस्ती के सालकोष्टक उद्यान में महावीर और गोशालक के बीच झगड़ा हुआ और वैशाख मास में जब महावीर मेंढियगाम के सालकोष्टक चैत्य में थे तब सख्त बीमार होकर उनके मरण की अफवाह उड़ी, और करीब इसी अर्से में शिष्य जमालि ने श्रावस्ती के कोष्टक चैत्य में महावीर के वचन का उत्थापन किया और उसके साधुओं में दो पार्टियाँ हुईं। इसके बाद ठीक एक वर्ष
एक जगह लिखा है, 'जमालि अनगार अपने आचार्य और उपाध्याय का प्रत्यनीक शत्रु-हुआ, वह अपने आचार्य उपाध्याय का अपयश करनेवाला हुआ । ( जमाली णं अणगारे आयरियपडिणीए उवज्झायपडिणीए आयरियउवज्झायाणं अयसकारए) - भगवती ९, ४८९ ।
इन जैन उल्लेखों से यह बात सिद्ध है कि जमालि के मतभेद से निर्ग्रन्थ संघ में एक अनिष्ट - चर्चा खड़ी हो गई थी । इसी चर्चा और भिन्नता को लक्ष्य करके निर्ग्रथों के विषय में " भिन्नानिग्गंथद्वेधिक जाता" ये शब्द बौद्ध पिटकों में लिखे गए हैं जो खास करके जमालि के शिष्यों पर घटित होते हैं ।
१४. जैन मत में भेद डालनेवाले जो सात निह्नव हुए उन सब में पहला 'जमालि' था, यह बात पहले ही कह दी है । जमालि ने जो मत निकाला था उसका नाम 'बहुरत' था । इस बहुरत मत की उत्पत्ति का निरूपण करते हुए आवश्यक निर्युक्तिकार लिखते हैं- 'महावीर को केवल ज्ञान उत्पन्न हुए १४ वर्ष हुए तब श्रावस्ती में 'बहुरत' दर्शन की उत्पत्ति हुई । देखो गाथा -
"चोद्दस वासाणि तया, जिणेण उप्पाडियस्स नाणस्स । तो 'बहुरयाण' दिट्ठी, सावत्थीए समुप्पन्ना ॥ २४१ ॥''
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