Book Title: Vipaksutram
Author(s): Abhaydevsuri, 
Publisher: Agamoday Samiti

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Page 10
________________ विपाके श्रुत०१ ॥ ३७॥ १ मृगापुत्रीयाध्य. मृगापुत्रावलोकनं सू०४ ************* मियापुत्तस्स दारगस्स अणुमग्गजायते चत्तारि पुत्ते सव्वालंकारविभूसिए करेति २त्ता भगवतो गोय-| मस्स पादेसु पाडेति २त्ता एवं वयासी-एए णं भंते! मम पुत्ते पासह, तते णं से भगवं गोयमे मिया- देवी एवं वयासी-नो खलु देवा० अहं एए तव पुत्ते पासि हव्वमागते, तत्थ णं जे से तव जेटे मियापुत्ते| दारए जाइअंधे जातिअंधारूवे जंणं तुम रहस्सियंसि भूमिघरंसि रहस्सिएणं भत्तपाणेणं पडिजागरमाणी २ विहरसि तं णं अहं पासि हव्वमागए, तते णं सा मियादेवी भगवं गोयम एवं वयासी-सेकेणं गोयमा! से तहारूवे णाणी वा तवस्सी वा जेणं तव एसमढे मम ताव रहस्सिकए तुम्भं हव्वमक्खाए जओणं तुम्भे जाणह?, तते णं भगवं गोयमे मियादेवीं एवं वयासि-एवं खलु देवाणुप्पिया! मम धम्मायरिए समणे भगवं महावीरे जतो णं अहं जाणामि, जावं च णं मियादेवी भगवया गोयमेण सद्धिं एयम8 संलवति तावं च णं मियापुत्तस्स दारगस्स भत्तवेला जाया यावि होत्था, तते णं सा मियादेवी भगवं गोयम एवं वयासी -तुन्भे णं भंते! इहं चेव चिट्ठह जा णं अहं तुभं मियापुत्तं दारगं उवदंसेमित्तिकह जेणेव भत्तपाणघरे तेणेव उवागच्छति उवागच्छित्ता वत्थपरिययं करेति वत्थपरिययं करित्ता कट्ठसगडियं गिण्हति कट्ठसगडियं गिण्हित्ता विपुलस्स असणपाणखाइमसाइमस्स भरेति विपुलस्स असणपाणखाइमसाइमस्स भरित्ता HARYANA १ 'जओ णं'ति यस्मात् । २ 'जाया यावि होत्था' जाता चाप्यभवदित्यर्थः । ३ 'वत्थपरियदृ'ति वस्त्रपरिवर्तनम् । * Jain Education international For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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