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सहित समवसरणमां आव्यो अने जिनेश्वरने नमी इंद्रनी पाछळ प्रभुनी देशना सांभळवा बेठा. प्रभुए स्वयंभूने उद्देशीने बोल्या, हे भद्र! चारित्र लेवानी तारी योग्यता नथी. तेथी श्रावक धर्म सांभळी पांच अणुव्रत, त्रण गुणव्रत अने चार शिक्षाव्रत ए बार व्रत समकित सहित पोतानी शक्ति प्रमाणे पाल्या होय तो ते देवता अने मनुष्यना सुखवडे प्रौढ एवा सात आठ भवे सिद्धि आपनारा थाय छे. ते बारव्रतमाथी पहेला व्रत श्रद्धाथी अंगीकार करे ते श्रावक सदाने माटे निरपराधी एवा त्रस जीवोने जाणी जोईने वध करतो नथी, तेमज पर्व दिवसोमां विशेषपणे स्थावर जीवोने तथा अन्य सापराधी जीवोनो पण वध करतो नथी जे उत्तम पुरुष पर्वने विषे पण शुद्ध दया पाळे छे ते नृपशेखर राजानी जेम भवोभव सुखी थाय छे अहिं प्रथम व्रत उपर नृपशेखर राजानी कथा आपवामां आवेल छे. जे मनन करवा लायक छे.
मार्गानुसारी एवो पण जो पुरुष निराधार मृषावाद करे तो तेने पगले पगले घात थाय छे. कन्यालिक वगेरे असत्यो नहिं बोलनार बीजुं व्रत पाळनार कहेवाय छे. ए असत्योनी अंदर थापण ओळववानो दोष तो बीजानो नाश करनार गणाय छे अने ते दोष करनारने बे त्रण व्रतानो भंग थाय छे. उत्तमजनो विमलनी जेम असत्य बोलनार मनुष्यनो कदी पक्षपात करता नथी तेम कमळनी जेम सत्य बोलनार राजमान्य, स्वजनोथी पूजित अने महत्त्वनी कीर्तिवाळो थाय छे. अहिं . विमल अने कमळना दृष्टांतो आपेला छे. जे बोधदायक छे.
अदत्तादान विरति व्रत माटे प्रभु उपदेशे छे के, जे मनुष्योए पूर्वे पारका हरेला द्रव्योथी पोताना हाथने बाल्यो नथी, ते पुरुषना उत्तम हृदयने अग्नि पण बाळतो नथी. जे लेवाथी आ चोर छे एम लोको कहे छे तेवी अदत्त वस्तु लेतो नथी ते सुरदत्तनी जेम आ पृथ्वीमां श्लाघनीय छे. अने तेवी वस्तु ग्रहण करे छे ते कमळसेननी जेम निंदनीय थाय छे. आ कथा पठन करवा योग्य छे.
आचारवाळी पोतानी स्त्रीमां संतोष राखवो अने स्त्रीए पोताना पतिमां संतोष राखवो ए गृहस्थो माटे विद्वानोए चोथु व्रत कहेल छे. जे पुरुषो रोष वगर पोतानी स्त्रीनो पण त्याग करे छे, तेओने युक्तिवडे यतिओथी पण अधिक . जाणवा. जो के एवा मनुष्यो थोडा जोवामां आवे छे परंतु सर्व जनोए पर्वोना दिवसमां तो स्त्री संग सदा वर्जित करवो जोईए. क्लिष्ट बुद्धिवाळा जे पुरुषो परस्त्रीनी अभिलाषा करे छे ते पुरुषो यावच्चंद्र सुधी चंद्रनी जेम अवश्य दुःख पामे छे. अने जे पुरुषो आदरथी स्वदार संतोष राखे छे, तेओ सुरेन्द्रदत्तनी जेम
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