Book Title: Vimal Bhakti
Author(s): Syadvatvati Mata
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 13
________________ विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका ११ २. प्रमाणातिरेक दोष-प्रमाण से अधिक भोजन करना प्रमाणातिरेक कहलाता है । मुनियों के आहार की विधि इस प्रकार बताई गई है ---- कुक्षि के एक भाग को अत्र से भरे, एक भाग पेय पदार्थों से पूरित करे तथा एक भाग वायु के संचार के लिये खाली रक्खे। आहार के प्रति अत्यधिक लालसा होने पर इस विधि का उल्लंघन किया जाता है तो प्रमाणातिरेक नामक दोष लगता है । प्रमाणातिरेक आहार से ध्यान भंग होता है, अध्ययन का विनाश तथा निद्रा व आलस्य की उत्पत्ति होती है । ३. अंगार दोष -- इष्ट अन्न पानादि की प्राप्ति होने पर राग के वशीभूत होकर अधिक सेवन करना अंगार दोष हैं । - ४. धूम दोष — अनिष्ट अन्न पान आदि की प्राप्ति होने पर द्वेष करना धूम दोष है । ३२ अन्तराय १. काक, २. अमेध्य, ३. छर्दी, ४. रोधन, ५. रुधिर, ६. अश्रुपात, ७ जान्वध स्पर्श, ८. जानू परिव्यतिक्रम, ९. नाभ्यधः निर्गमन, १०. प्रत्याख्यात सेवन, ११. जीववध, १२. काकादि पिण्डहरण, १३. पिण्ड पतन, १४. जन्तुवध, १५. मांस दर्शन, १६. उपसर्ग, १७. पादान्तर पञ्चेन्द्रिय जीवगमन १८. भाजन सम्पात, १९. उच्चार, २०. प्रस्त्रवण, २१. अभोज्य गृह प्रवेश, २२. पतन, २३ उपवेशन, २४. दंष्ट्र, २५. भूमिस्पर्श २६. निष्ठीवन, २७ कृमि निर्गमन २८. अदत्त ग्रहण, २९. शस्त्रप्रहार, ३०, ग्राम दाह, ३१. पादेन पैरों से ग्रहण, ३२ हस्तेन- हाथ से ग्रहण | - १४ मल दोष १. रोम ( बाल ), २. जीव रहित शरीर, ३ हड्डी, ४. कुण्ड ( अर्थात् चावल आदि के भीतर के सूक्ष्म अवयव, ५ कण, अर्थात् गेहूँ, जौं आदि के बाहरी अवयव, ६ नख, ७. पीव ८. रुधिर, ९ चर्म १०. मांस, ११. बीज, १२. फल १३. कन्द और १४ मूल । ये १४ अशुभ मल कहलाते हैं । "

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