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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका २. प्रक्षित दोष-घृत आदि से चीकने पात्र से या हाथ से आहार लेना प्रक्षित दोष है।
३. निक्षिप्त दोष-सचित्त कमल-पत्र आदि पर रखा हुआ आहार लेना निक्षिप्त दोष है।
४. पिहित दोष-सचित्त कमलपत्र आदि से ढके हुए अत्र को ग्रहण करना पिहित दोष है।
५. उज्झित दोष-दाता के द्वारा दिये गये आहार के बहुभाग को नीचे गिराकर स्वल्प ग्रहण करना उजिया दोष है।
६. व्यवहार दोष आहार देने के पात्रादि को अच्छी तरह से देखे बिना आहार देना व्यवहार दोष है।
७. दातृ दोष-बिना वस्त्र पहने अथवा एक कपड़ा पहनकर आहार देना, नपुंसक, जिसके भूत लगा है, जो अन्धा है, पतित या जाति बहिष्कृत है, मृतक का दाह संस्कार करके आया है, तीव्र रोग से आक्रान्त है, जिसके फोड़ा-फुसी है, जो कुलिंगी है, नीचे स्थान में खड़ा है या साधु से ऊँचे स्थान पर खड़ा हो, जो स्त्री पाँच महीनों से अधिक गर्भवती है, वेश्या है, दासी है, लम्बा घूघट निकाले हुए है, अपवित्र है, मुख में कुछ खा रही है-इस प्रकार के दाता का आहार लेना दातृ दोष है।
८. मिश्र दोष-सचित्तादि से अथवा षट्काय के जीवों से मिश्रित आहार लेना मिश्र दोष है।
९. अपक्व दोष-जिस पानी आदि के रूप, रस गन्धादि का अग्नि आदि के द्वारा परिवर्तन नहीं हुआ हो उसे आहार में लेना अपक्व दोष है ।
१०. लिप्त दोष-आटे आदि से लिप्त, चम्मच आदि से अथवा सचित्त जल से लिप्त पात्र या हस्त आदि से दिये हुए आहार को लेना लिप्त दोष है।
४ अंगार दोष १. संयोजन दोष-स्वाद के लिये शीत वस्तु में उष्ण वस्तु अथवा उष्ण वस्तु में शीत वस्तु मिलाकर आहार करना संयोजन दोष है । [ इस प्रकार के आहार से अनेक रोग भी उत्पन्न होते हैं तथा असंयम की भी वृद्धि होती है।