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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका [सरल पंक्तिबद्ध सात घरों से लाया हुआ आहार साधुओं को देने योग्य है, सात घरों के परे स्थित घरों से लाया हुआ आहार साधुओं को देने योग्य नहीं है]
१३. उद्घाटित दोष आहार के लिये साधु के आ जाने के अनन्तर मुद्रा, शील, मुहर आदि का भेदकर वा किसी पत्थर आदि से आच्छादित वस्तु को खोलकर देनः उपारिता कोष है ।
१४. मालिकारोहण दोष—ऊपर भाग में रखी हुई खान-पान आदि की वस्तु को सीढी लगाकर उतारना और साधुओं को देखना मालिकारोहण दोष है।
१५. आच्छेद्य दोष-राजा आदि के भय से जो आहार दिया जाता है वह आच्छेद्य दोष है।
१६. अनिसृष्ट दोष-ईश और अनीश के अनभिमत से अथवा स्वामी और अस्वामी के असहमति या बिना इच्छा के, अनभिमत से आहार देना अनिसृष्ट दोष । ये सोलह उद्गम दोष श्रावकों के आश्रित हैं। अत: श्रावकों को इन सोलह बातों का ध्यान रखना चाहिये । यदि श्रावक यह कहता है कि यह रसोई सोला की बनाई है, यानि सोलह दोषों को दूरकर बनाई है, यह उसका तात्पर्य है ।
१६ उत्पादन दोष १. थातृ दोष-बालकों के लालन-पालन की शिक्षा देकर आहार ग्रहण करना धातृ दोष है।
२. दूत दोष—दूरस्थ बन्धुओं के समाचार लाना-ले जाना दूत दोष है।
३. भिषग्वृत्ति दोष—आहार के लिये गजचिकित्सा, बालचिकित्सा, विषचिकित्सा आदि बतलाना भिषग्वृत्ति दोष है।
४. निमित्त दोष--स्वर, अन्तरिक्ष, भौम, अंग, व्यंजन, छिन्न, लक्षण और स्वप्न आदि बताकर भिक्षार्जन करना निमित्त दोष है।
५. इच्छाविभाषण दोष-किसी श्रावक के यह पूछने पर कि हे