Book Title: Varddhaman Mahavira
Author(s): Nirmal Kumar Jain
Publisher: Nirmalkumar Jain

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Page 13
________________ है वह धर्म, संस्कृति, दर्शन मवमे कि आखिर उसे घटिया क्यों समझा गया? उमे नरक का द्वार क्यों ममझा गया? वह पूछ रही है उमका स्थान क्या है? उसे मंनोपजनक उत्तर न मिलेगा तो उसकी संतति उमका क्लेग लेकर पैदा होगी। इम ममम्या पर महावीर के विचार बिल्कुल मौलिक और मन्य के निकट है । उनका मन्य-अन्वेषण कटुयथार्थ को ममन्विन कर रहा है । उन्होंने न तो नारी उपासकों का मार्ग चुना न उनका जिन्होंने नारी को नरक का द्वार माना। उस जिनपुरुष ने यथार्थों में मग्ख नहीं मोड़ा। उमने वे आदि भूलें बताई जिनके कारण मघर मन्य इनने कटु यथार्थों में टूट गया। यदि महावीर के नारी के प्रति विचार मही तरह से अपना लिये जाने नो आज यह स्थिति न होती। आज भी यदि उन्हें ममझ लिया जाय तो लिब मुवमेण्ट आदि के द्वाग मानवीय शक्ति व्यर्थ न होगी। इम ममम्या का, पुरुपनारी के बीच द्वैत भाव का, अन्त हो जायेगा। एक प्रमुख प्रश्न आज मनप्य के मामने यह है कि वह है क्या? एग्जिम्टेमियलिम्ट्स (Existentialist) यह प्रश्न पूछ-पूछ कर मनम-उद्वेलिन कर रहे है । हाइनरिच हाईन ने ये प्रश्न पूछे माधारण लोगों में। और फिर्केगाड, जामपर्म, मात्र, हमर्ल ने ये प्रश्न हर साधारण क्लर्क, व्यापारी, वकील, पत्रकार के रोजाना के प्रश्न बना दिये है । शंकगचार्य ने "अहं ब्रह्मोम्मि" कहकर इम प्रग्न को हमेशा के लिये गान्त करना चाहा था। पर प्रश्न ऐमे गान्त नहीं होते। बर्फ पर फिमलती वर्फ की एक गेद की तरह मनुष्य की आत्मा उलझनों, दुर्वासनाओं, तंगियों, अपगधों का एक गोला बनती जा रही है। उसका नित्य, शुद्ध, बुद्ध रूप कही देखने में नहीं आता । इम विषय पर महावीर किम तरह सर्वथा मौलिक और यथार्थवादी हैं यह भी इस बार्ता का विषय है। में यह भी कहना चाहूंगा कि महावीर से सात्विक विचारक नहीं है जो केवल गुणों से ही व्यक्तित्व की रचना करते हैं। वे काले

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