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बुद्ध है। उनके प्रमाद और प्रपंच मे बचाने के लिये यह जरूरी था कि महावीर और बुद्ध उन्हे यथार्थ की ओर खीचने । उन्हें दर्शन कगने उम यथार्थ आत्मा के जो उनके भीतर थी जिसे छोडकर वे मन् गे बेखवर आध्यात्मिक विलाम में डुबे हुए थे। अनः, उन्होंने कहा कि आत्मा की नित्यता की वात गलत है। यह नो हर क्षण बदल रही है। महावीर ने कहा कि इमे निगकार या निर्गुण कहना गलत है। यह तो वही आकार रखती है जिम गरीर में यह है। उनका उद्देश्य था कि मनाय को शन्य में ध्यान लगाने की आदत मे बचाये। वह आत्मा को एक abstraction ममझ रहा था जो उममे हे और जो उसके किमी भी बरं कामगे मैली नही होती। महावीर ने कहा कि वह मैली होती है। दम नग्ह दर्शन को उन्होंने पंख लगाकर उड़ने मे गेका । उमे पथ्वी पर चलना गिवाया। ____ ममय आया है जब अनभवों के बाद मानव गमह ने यह पहचानना शुरू किया है कि महावीर ने जो बान परम पुनीन गन्यो गे हट कर कही थीं वे कहनी बहुन जरी थी। उन्होंने दर्शन को पृथ्वी पर चलना मिखाया। वे पहल विचारकहं जिन्होंन गरिपूर्ण मन्यों को छोटकर अपूर्ण मन्यों की मार्थकना बनाई। परिपूर्ण मन्य कलापन हो चले ह आज के यग में। आज भी वही स्थिति है जो उनकं मामने थी। आज भी मनाय को पूर्ण मत्यवादियों ने बहका रखा है। विश्वास के आचल में उमकं यथार्थ को नग्न किया जा रहा है। ऐमा ही विश्वामघान ईमागं छ: मो शताब्दि पूर्व भी हुआ था।
मनेम यावी पडिबद्ध जीवी, न वीममे पंडिा आमान्ने
(अशुप्रज पंडिन पुरुप को मोह निद्रा में मोये हुए मंमागे मनप्यों के बीच रहकर भी मव नगह मे जागम्क रहना चाहिए और किमी का विश्वाम नहीं करना चाहिए)
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