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तब जरूरत पड़ेगी एक नये मंगीतकार की जो इन बिग्वरे मरों को फिर एक आर्केस्ट्रा में मंजो दें। भोग प्राप्त होने तक प्रकृति और त्रिपुग दिव्य मंगीतकार बन हमारी गक्तियों को मग्बद्ध किये रहते है । परन्तु भोग के पश्चात् वे हम हमारे हाल पर छोड़ देते है । शक्तिाएं पछाड खाकर गरीर के भीतर गहाओं में गिर जाती है । एक विप्लव नम होता है । यह कठिन ममय है । अब आन्मा के जगने का ममय है। अब प्रमाद काम नहीं देता । आज नक आगमा गन्दग्ता के रिडोली में झूल रही थी। अनायाम ही मन्दम् उमकी पलकों पर विनर रहा था। उसके मनम में ग्वतः ही कमल मगेवर ग्विल रहे थे। मान गविन पनि कर रही थी। अब गुरुप विन के जगने की बला है। पर उसम है. पुरुषार्थ है. मघर्ष है। जो अनायाग ही प्राप्त था उग भोग का एक अनभव नाट कर देना है । अब उग मन्दग्म का अनभव दुवाग तब नक नहीं किया जा मकता जब तक पुग्ण विन दर्शन गैलरी से उठकर मंगीतकार नहीं बन जाती । भोग अपन में बरं नहीं है । पर गर्ग की टूट-फट जो भोग के बाद हमम होती है उन्हें बग कर देती है। यह जो दुजय आन्मा है यह अपनी टन्द्रियों के द्वाग उग मन्दरता का ग्म लेने की आदी हो गई है। ब्रह्मनयं (Austerity), का न्याग कर उमने एक गन में दिव्य आन्माओं को काट कर दिया।
यह आत्मा प्रमादमय हो गयी है । इमम अहकार, ममन्व, मोह का अभ्यदय हो चका है। जब नक मानव दन पदार्थों में पुनः अपने को मुक्त नहीं कर लेना नव नक उमं गुनः मौन्दर्य बोध नहीं होगा। यह नभी होगा जब आत्मा का विहान होगा। उमं उममे अधिक विमित होना होगा जैमा वह था। उसका जीवन द्वैन मं गा हुआ जैमा हर वच्चं का होता है। बच्चा और मां एक दूम में अभिन्न है। बच्चा मां के बिना नहीं जी मकना । वह उम दूध पिलानी है उमकी दिनचर्या चलाती है। पर जब वह बड़ा होता है नो एक दिन मा उमका यह काम करना बन्द कर देनी है । वह दिन आया है जब उम द्वैन का त्याग कर