Book Title: Varddhaman Mahavira
Author(s): Nirmal Kumar Jain
Publisher: Nirmalkumar Jain

View full book text
Previous | Next

Page 94
________________ को झकझोर दिया। वे है आचार्य रजनीश । इम तरह हिन्दी के दार्शनिक साहित्य पर महावीर की छाप बहुत गहरी उतर चुकी है और आश्चर्य नही यदि यही स्रोत एक नई ऐमी दर्शन -परम्परा को जन्म दे दे जो आधुनिक युग की आवश्यक्ताओ की पूर्ति कर सके। हिन्दी काव्य जगत में महावीर पर जो रचना हुई वह अधिकाशन : प्रशमको और धर्मभीरओ की रचना है, प्रेमियो की नही । इस कारण उसमे शाश्वत तत्व नम है और वह स्थायी मूल्य की रचना नही हो सकी। रघवीर शरण मित्र ने जिम मेक्यूलर भावना मे 'वीरायन' लिखा है वह एक दिशाबोध है और उस परम्परा में होने वाली रचनाए नि. मदेह एक दिन मौन्दर्य के गान स्रोतों को दृढ लेगी। जिम भावना मे सरदाम, मीरा, रमग्वान ने कृष्ण पर लिखा, जब तक भक्ति प्रेम के उस रजत तप तक नही निखरेगी तन तक महावीर पर पदावलिया ही लिखी जा मकती है, साहित्य रचना नहीं हो सकती। पश्चिम हेमिग्वे, ज्विग, दोनोवस्की आदि के अमर में साइक्लोजिकल मेल्फ (Psychological Self ) को ही केन्द्र मानकर रचना करता रहा । इस तरह क्लामिक तत्व सब मम गये । परन्तु हिन्दी में प्रेमचन्द्र, जयशकर प्रमाद, निगला, जेनेन्द्र, महादेवी वर्मा, मैथिलीशरण गुप्त किमी ने भी उन "स्वत्व" या साइक्लोजिनल सेल्फ की व्यवन नहीं किया । सभी उसे उस दार्शनिक मन्य की ओर ले चले ह जहा मरकर उसे एक नया जीवन मिल जाता है । भने सघर्षमय जीवन- कोलाहल से हटकर मनाय की आत्मा हिन्दी मे निरन्तर, एक दार्शनिक पुनर्जन्म उनी रही है—जो मान्दयं ने आलावित हा । अज्ञेय ने अवश्य इस परम्परा से हटकर रचना की थी। महावीर के आत्मनिग्रह की संवेदना तक हिन्दी मे बगी ह । नारद भक्तिमत्र मे प्रेमी की मनोदशा का जो वर्णन है वही एक सच्चे जेन का स्वरूप है। उसके अभाव में साहित्य के फल नहीं मिलने । जेमा मने पहले वह । महावीर का इम्पेक्ट हिन्दी साहित्य पर 83

Loading...

Page Navigation
1 ... 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102