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महावीर के जीवन पर हिन्दी में बहुत कम काव्य रचना हुई। वर्तमान यग में पं. अनूप गर्मा का "वईमान" और वीरेन्द्र मिश्र का "अन्तिमतीर्थकर"दो प्रमुख कृतिय है। इन्हें विवरणात्मक कहना अधिक उपयुवन होगा । वीरेन्द्र जी की भाषा परिमाजित है और विषय के अनरूपगली गरिमामय है। इन दोनों ही कृतियों की विशेषता है कि ये मेक्यूलर मड में लिखी गई है। किसी धर्म का प्रणेना हो जाना किमी भी महापुरूप को लगभग माहित्य में वहिप्कृत कर देता है । कारण यह है कि उसकं अनयायी उम पर जिम श्रद्धा या अन्धविश्वाम के माथ लिखते हैं वह पतनी उग्र और अनिरंजिन होती है कि उममे माहिन्यमलिना नहीं बनी। इन दोनों कवियों ने महावीर को एक नायक के रूप में लिया है, एक अलौकिक दिव्य विभनि के रूप में नही। इन्होंने उन्हें मनप्य जीवन की परिधि में उतारा है। यह प्रयाम नि:संदेह प्रशंसनीय है। नन्मय बग्वाग्यिा और जयकुमार 'जलज' ने भी महावीर को विषय बनाकर कुछ अच्छी कविताएं लिखी है।
पग्नु हिन्दी का जो अंग महावीर के व्यक्तित्व में अत्यधिक मम्पन्न हुआ वह है दर्शन तथा वंचारिक माहिन्य । इममें सर्वप्रथम नाम आता है गण्ट्रपिता महात्मा गांधी का । सम्भवतः संस्कृत में या किसी भी पान्चान्य भाग में महावीर के अहिंमा, अचौर्य, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य आदि मिद्धान्तों पर एनने मगल और हृदयग्राही ढंग से नहीं लिखा गया जितना महात्मा गांधी ने हिन्दी में लिया। गांधी जी ने हिन्दी में दर्शन माहित्य को इन नरह महावीर के मिद्धान्तों मे भर दिया है कि यह कहना अनुपयक्त न होगा कि बाद में जो भी मौलिक दार्शनिक चिन्तन हिन्दी में हुआ वह महावीर परम्पग में ही हुआ। इम दृष्टि मे काका कालेलकर, महात्मा भगवानदीन, मुनि विद्यानन्द, आचार्य नुलमी, डा. सम्पूर्णानन्द. विनोबा भावे के नाम उल्लेखनीय है । इन मवने अलग एक और नाम नाना है आधुनिक युग के एक मौलिक चिन्नक का जिमने महावीर की पवित्र वाणी में फिर हिन्दी के वैचारिक माहित्य
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