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में उसका नायक महावीर की मति के आगे नमन कर कहता है कि उसके जीवन की शान्ति का स्रोत यही है । महावीर का तप और कठिन व्रत उस कठोर चट्टान की तरह है जिससे मनुष्य भ्रमित हो जाता है कि यहां केवल कठोरना ही कठोरता है । परन्तु मीठे पानी के मारे स्रोत उन्ही कठोर चट्टानों में चलने है। मिट्टी के कोमल पहाड़ों मे निकले झरनों का पानी गदला होता है ।
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