Book Title: Varddhaman Mahavira Author(s): Nirmal Kumar Jain Publisher: Nirmalkumar Jain View full book textPage 100
________________ दूर करने होंगे ये तिमिर भरे अवगुठन विहंमने दो उस शिश को जो छिपा है नारी तन में महायता करो उसकी उम पथ पर बढने में जिस पर चली कभी मैत्रेयी, गार्गी दिव्य युग में भयो, दुष्ट कामनाओं की गजलके मत फेको उन पर निरन्तर जकड़ रहे हों उन्हे दुष्ट चाहों से और फिर कहने हो नरक द्वार है ये तुमने खिलने कब दिया नारी पुष्प को घरा पे 89Page Navigation
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