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दूर करने होंगे ये तिमिर भरे अवगुठन विहंमने दो उस शिश को जो छिपा है नारी तन में महायता करो उसकी उम पथ पर बढने में जिस पर चली कभी मैत्रेयी, गार्गी दिव्य युग में भयो, दुष्ट कामनाओं की गजलके मत फेको उन पर निरन्तर जकड़ रहे हों उन्हे दुष्ट चाहों से
और फिर कहने हो नरक द्वार है ये तुमने खिलने कब दिया नारी पुष्प को घरा पे
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