________________
में खो चुके हैं। आज उस कालुप्य का स्थान नहीं है । पूर्ण मनुष्य जाति चतुर्दिशाओं से भद्र विचारों व साहित्य को धर्म संकीर्णता से उठकर विरुद्ध मौन्दर्य परम्परा में अंगीकृत करे, यही साहित्य के भविष्य का द्योतक हो सकता है । साहित्य उद्गम मूख रहे हैं । भाषा वह भूमि है जिम पर यदि साहित्य न उगा तो अश्लील और बेहूदा साहित्य स्वतः उगेगा। भूमि उत्पन्न किये बिना न रहेगी जब तक उममें उर्वग शक्ति है। वह भाषा धन्य है जो धार्मिक मनोभावों से मुक्त है, जिस पर धर्म गामन नही करते अपितु वह मुन्दरम् शामन करता है जो सभी धर्मों का आगध्य है। आदिकाल से मनुष्य ने माहित्य को धर्माधीन कर रखा है । आज ममय आ गया है कि इस दामता मे मनप्य मुक्त हो और मौन्दर्य का आव्हान मक्त नेत्रों मे कर मके । इम मक्ति का सेन बनाने के लिये आवश्यक है कि अन्य धर्मों में प्रेरित काव्य को भी हिन्दी उमी नगह मान्यता दे । इममे बंधे हुए आवेग खलंगे और एक ऋण में हम मभी मुक्त होंगे।
महावीर का अमर हिन्दी काव्य पर परोक्ष रूप मे बहन पड़ा है। यहां तक कि चरित्रों का गठन, भावों की अभिव्यक्ति उमी कोमल महृदय, हिमाहीन परिवेश में है । जो महावीर ने श्रावक के लिये मान्य मिद्धान्त दिये थे वे प्रेमचन्द्र, जयगकर प्रमाद, मदर्शन, जैनेन्द्र आदि लव्यप्रतिष्ठिन माहित्यिकों के मर्म में बहे है । मन्दग्म के जिम दर्शन के लिये महावीर के प्राणों ने मभी उपमर्गो मे होड लडाई थी वही मंघर्ष अपनी मीमाओं में नुलमीदाम, मग्दाम, मीग, निगला, महादेवी और पन्त का रहा है। केवल महावीर नाम में न आ मकने का कारण वह धार्मिक अलगाव और परम्पग है जिममें इन कवियों का जन्म हुआ।
नामों की प्रनिष्ठा नो एक वाह्य अभिव्यक्ति है । माहिन्य की एक आन्तरिक अभिव्यक्ति भी होती है । उम आन्तरिक अभिव्यक्ति में महावीर जगह-जगह हिन्दी को अपनी पावन चरण रज में मुक्न कर रहे है।
81