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हिन्दी साहित्य और महावीर (महावीर जयन्ती पर २२.४.७५ को आकाशवाणी, दिल्ली से प्रसारित वार्ता) हिन्दी माहित्य की आत्मा में जो पूज्य पुरुष बसे है वे हैं गम,
कृष्ण, महावीर और नानक । जहां गम हिन्दी के मर्यादा मूल है वहां कृष्ण प्रेम और शृंगार के स्रोत हैं । महावीर मानवीय मन्यों के उद्गम है और नानक कर्मप्रेरणा के अविरल प्रवाह । जो हिन्दी इन मनीपियों में प्रेरित है उमकी आत्मा गर्वाङ्ग मम्पन्न है तो इममें कोई आश्चर्य नही।
महावीर हिन्दी माहित्य में तप, त्याग, करणा, प्राणियों में प्रेम आदि भावों की आत्मा है । जिम तरह मनग्य गरीर में आत्मा के दर्शन नहीं होते परन्तु आत्मा ही गरीर का मार है उमी तरह महावीर नाम लिखे हुए हिन्दी माहित्य में बहुत कम गढ़ने को मिलता है परन्तु लिम्वने के पीछे जो मनोदशा है उसके कण-कण में महावीर वमे है।
यह कहना उपयक्त होगा कि महावीर विषय हिन्दी को इतना प्रिय है कि उसने दमे अपने हृदय में छपा कर नेत्र मृद लिये है । जो पढना चाहें, जो उमकी लग्जा को समझने है वे उमे हिन्दी के रोमरोम में देख मकत है।
यह एक भारतीय परम्पग रही है कि हर प्रिय चीज़ को परोक्ष कप में ही प्रकट किया जाना है। देवता भी परोक्ष प्रिय है । दमी तरह महावीर को नाम में नहीं मिद्धान्नो में हिन्दी ने अपने कण-कण में अभिव्यक्त किया है। हिन्दी माहित्य में जो नायक-नायिका के मूल गण है वे मत्र महावीर की क्षमा, दया, महिष्णुता, प्रेम और त्याग की
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