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प्रक्षालन (Catharsis) इस तरह जो चीज हमे माधारण जीवन के अनभवों में मिल रही है- अविश्वाम-उमका महावीर प्रक्षालन कर रहे है दार्शनिक तल पर । यह बात समझने की है। गंजाना के जीवन में मिला यह विप रोजाना के जीवन में ही हम व्यक्त कर रहे है। यह विप उगलने जमा है। इममे किमी का कल्याण नहीं हो रहा है। उमगे नो लोग और दूर-दूर चले जाते है । यह ऐसा ही है कि हम कडा पडोगी के घर के बाहर दाल दे। वह नागज होगा और बर बढेगा । परन्तु यदि विगी गना मिल मे contract हो जाय और हम माग कहा वहा भेज देनोम गन्दगी का प्रक्षालन हो गया और एक बड़ी काम की चीज बन गई। इसी तरह यह अविश्वाम जो मामान्य जीवन में मिल रहा है दमका प्रक्षालन दार्शनिक नल पर कगे। यह नल मर्वथा व्यक्तिगत है और उसमें इतनी मशीन व उपकरण है कि क्षणभर में उम अविम्बाम की कायाकल्प हो जायगी। दार्शनिक तल पर यह पहुंचेगा अविश्वाम बनकर परन्तु वहा में बाहर निकलेगा जागृति, जागरूकता बनकर, उल्लामत चेतना बनकर। माधारण लोग जब हमम मिलंगे तो उन्हें हममे अविश्वास नहीं मिलेगा बल्कि एक मदा मजग चेतना मिलेगी जिमके ममर्ग मात्र में उनमे म्फनि, होगी, म्पन्दन होगा, ऊर्जा जगेगी। वे भी अधकार में अलमार्य पौधों की नम्ह मर्य मी रश्मियों के लिये हाथ ऊपर करेंगे । म नग्ह अविश्वाम की धाग एक काम की चीज हो जायेगी। अविश्वाम का विप हममे जग नही कंगा। हमारी प्रकृति उमगं घटंगी नहीं बल्कि वह अविश्वाम आत्म-जागृति के लिये Raw material बनेगा । वह अग्नि बनेगा जिममे उपग्रह छोड़े जाते है । जब मभी मनुष्य अविश्वाम का मूल्य ममझ
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