Book Title: Varddhaman Mahavira
Author(s): Nirmal Kumar Jain
Publisher: Nirmalkumar Jain

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Page 69
________________ नो उमकी दार्गनिक मन्य हो जायगी। उमकी जगह आत्मा एक और उच्च म्प लेकर प्रगट होगी। यह निलिम्म जो मनोवैज्ञानिक नल पर फैला है दम छिन्न करने का मार्ग ही महावीर बना रहे है । जव नक इम निलिम्म को अलादीन छिन्न नहीं करता नव नक चिगग की बात करना मना है। विगग नक पहुचने के लिये अदम्य माहम की जरूरत है। जिनके पाम कान ह व मन ले बाढविल में बार-बार मसीहा कह रहा है । महावीर कहते है-धर्मश्रवण अति दुर्लभ है । कान नो परनिन्दा मनना चाहते है । यह परनिन्दा ही positive है अविग्वाम के माथ । जीवन में जो यह मनायो के प्रति अविग्वाम हमार मन में जग रहा है और नाभि में उठ रहा है दम परनिन्दा मनन की जमग्न है । दमे गेको मन । बम यह जानना जरी है कि ये दोनो एक दूम का महयोग करके एक दूमरे को neutralize कर देंगे। अपने स्वार्थ और दूमगे के म्वार्थ को positic कर दो, महयोगी कर दो। नव ये बादल हट जायंगे । नब म्वन. धर्म हमारे कानों में प्रविष्ठ हो जायगा। __मनाग की विकृति है म्वार्थ । दमी मे अविश्वाम प्रकट होता है। इमी को देखकर हममें भी जिद में स्वार्थ जागना है । क्यों न नवीर की तरह हम उमके म्वार्थ में महयोग की गक्नि का आव्हान करें, प्रयनर में अपना म्वार्थ न जगायं । उमका ग्वार्थ नभी नक मगक्न रहेगा जब तक हमाग म्वार्थ उममे लडेगा । यदि मचमच दनना जान लिया है हमने और हमारे उद्गम में म्वार्थ का जन्म ग्वत्म हो गया है तो हमने दुर्जेय आत्मा को जीत लिया है । उमनाम्वार्थ म्वय ही नष्ट हो जायेगा। नापिन में कहा है "Resist not cil" यह केवल नागत्मा नहीं है। यह मत्रिय है। जपान उन यक्ति के प्रनि मद्कामना है. द्वाहीनता है। इसमे वगई को बल नहीं मिलना । जो बग करे उनके लिये भला कर । अर्थ ये कि उनके लिये बगै कामना मन कर। 58

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