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होगा। इसके मायने ये नही कि उमे अन्य प्राणियों में कोई दिलचस्पी न होगी। यह दिलचम्पी न होती तो महावीर मोक्षद्वार मे लौट न आने । यह अमीम करुणा क्यों है उममें? फिर नो प्रेम के कोई मायने ही न रहते । परन्तु वे निग्न्न- प्रेम भाव को महत्व दे रहे है । उसे आत्मा के विकाम का माध्यम बना रहे है । जो जितना विकमिन होगा वह उनना ही प्रेमी होगा । मन्यामी कोई खा व्यक्ति नहीं है। उममे तो माधुर्य और मन्दग्ता बग्मनी है। वह नो प्रकृति का सजग पुत्र है। वह "न्यमिग्रे" है जिमने मंमार के अमन् जाल मे मुक्त हो अपने में सुप्न माधर्य बोतों को जगा लिया है। ममाररूपमे जो मित्र-बन्ध आदि मिले थे वे तो इम के externalization थे। उनमे प्रभावित न होने के मायने ये नहीं कि उनमे उमे कुछ नही रहा । उनमे नाते तोडने के मायने यह नहीं कि वह उनमे अलग हो गया । उमने केवल उम नाइट क्लब में मिलने से मना किया है अपनी प्रिया कोजहां का वातावरण उमे घटनभग और अमन लगता है। इसके मायने है कि एक और मिलन की तैयारी है । भीतर एक मच्ची दुनियाँ है उममें वे अभिन्न होकर जन्म लेगे। यह दुनियाँ आत्मा है । इमे ही प्रेम मे एक होजाना कहा है । जो संमार रूप मे, externalized रूप मे ही, प्रिय को मन् मानेगा वह सम्बन्धों की डोर मे दूर उम अन्तरंग एकता को कमे पायेगा?
मजनू ने सहर छोडा तू सहग भी छोड़ दे
नजारे की हवस है तो लैला भी छोड़ दे। इक़बाल इसी अन्तर्जन्म की ओर इशारा कर रहा है । संसार जो चीज़ दे रहा है उसे त्याग दे। यानि उमे सत् मत समझ वग्ना कागज के फूल हाथ लगेगे । उमे ग्रहण नही करेगा तो वह चीज़ नप्ट नही हो जायेगी। जो है वह कभी नष्ट नहीं होगा। प्रिया सत् है वह कभी नप्ट नहीं होगी। उसे संसाररूप मे वरण न करके तेरी आत्मा द्वैत की भूल-भुल्लया से वच जायगी। जब तू मंमार रूप में उसका त्याग करेगा तो वह तेरे भीतर प्रगट होगी। वही सच्चा रूपहोगा जहां दोआत्माएं एक हो सकेगी।