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सृष्टि (Cosmology) सन् १९५० के बाद विज्ञान की दुनियां मे एक नया विचार होएल, बोदो, " गोल्ड आदि ने दिया। उन्होंने कहा कि पदार्थ की निरन्तर रचना हो रही है सृष्टि में । इममे पूर्व वैज्ञानिकों का म्याल था कि नया पदार्थ नहीं रचा जा रहा है। मृष्टि में पदार्थ जितना था उतना ही है केवल एक पदार्थ दूसरे में रूपान्तरित हो जाता है। परन्तु एक यह नया विचार था जिमसे विस्तृत होनी दुनियां ( Expanding universe ) का ख्याल पैदा हुआ । होएल ने बताया कि लगभग मोलह मौ करोड़ वर्ष पहले एक विशाल हमारी दुनियां जैमी ही दुनियां थी जो नाट हुई और उमकी समस्त ऊर्जा गविन ( Energy) एक अंगठे के बगवर जगह में केन्द्रित हो गई। यही में नया पदार्थ मृाट होता रहता है।
यह एक हैग्न की बात है कि हजारों वर्ष पूर्व मुष्टि के मम्बन्ध में जो तीर्थंकरों ने कहा वह वान विज्ञान मन् १९५० में पकड़ मका । तीर्थकर निगोद तत्व का जिक्र करने है। यह पदार्थ की वह ािन है जब वह पदार्थ भी नहीं बन सका है। यह अदृश्य है । इमे पदार्थ का आम्भिक रूप कहा जा सकता है । इमे अत्यन्त कप्टप्रद भी कहा है । सम्भवतः यह वही अंगूठे के बगबर जगह है जिमम ममम्न पदार्थ पदार्थ बनने मे पूर्व की स्थिति में ,मे पड़े है। पदार्थ के आरम्भिक रूप की परिभाषा आईस्टिन ने भी यही की है। वह उमे शक्तियों की एक मनत् बनी (A constant agitation of energies) कहता है । उसके अनुमार भी पदार्थ का यह आदि रूप अदृश्य है हवाओं और गविनयों की तरह।
इम निगोदावस्था में रहने के बाद जीव पृथ्वी, जल, अग्नि आदि
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