Book Title: Varddhaman Mahavira
Author(s): Nirmal Kumar Jain
Publisher: Nirmalkumar Jain

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Page 68
________________ सम्यक् चरित्र महावीर अहिमावादी है केवल प्राणियों के प्रति दया के कारण नही। " वे विचारों जिदों की हिंमा को भी हिमा ही कहते है । वे जानते है कि प्रहारो मे जिद नष्ट नही होगी। वह और रूपान्तरित हो जाती है । ऐमे रूप भी लेती है जिन्हे हम पहचान भी नहीं पाते । एडलर जुग आदि मनोवैज्ञानिको ने आज इमे मिद्ध भी कर दिया है। फिर क्या किया जाय' क्या इनमे कोई छटकाग नही ? क्या जीवन भर इन घृणित प्रवृत्नियो को व्यक्त करने रहना होगा? नहीं। महावीर यहाएडलर जग मे आगे दिशाबोध कगने है। जो करुणामय है उमका उपदेश किमी ऊंचे मच मे नही होगा। वह विलक्षण पुरुप मोक्ष की देहरी मे लौट आया है । वह छ रहा है मानवता की दुम्वती नस को। वह उसके सक्रामक रोगो मे भयभीत नही है, न उनमे घृणा करता है। कुछ भी नहीं है इम प्रपचमयी जगती मे जो उन्हें shock दे सके। मनप्य जीवन की मृतता, व्यर्थता, रुग्णता का खेल उन्होंने हजारों वर्षों में देखा है । वे उसके लिये मनग्य को लज्जित नहीं करते। वे उममे कहते है कि जानो कि ये विकार किमी म्वास्थ्य के म्पान्तर है। जिम तरह ये unfold हुए है उमी नग्ह वापिम उमी एक दुर्जेय आत्मा मे लीन भी हो मकने है । पर अब ये लीन हो मकते है केवल मुलझकर । इन्हे मुलझाओ । माहम के माथ यथार्थ की आखो मे आंखें डाल दो। तुम जानोगे कि दम Practical joke के पीछे जो छपा है वह दनना कट नहीं है। यह वही दुर्जय आत्मा है जो विना इंश्वर की नग्ह ज्ञानी हुए उमी ईश्वरीय खेल को पृथ्वी पर खेल रहा है। जब वह यह ग्वेल बन्द कर देगा और इमकी निर्थकना जान लेगा 57

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