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है। यह मनुष्य के शौर्य और बल के प्रतीक है । उसकी जीवन शक्ति के प्रतीक है । महावीर इन केगों को उग्वाडकर उम जीवन शक्ति में विदा ले रहे है । स्वेच्छा मे अपने उम जीवन की मृत्य कर रहे है जो उन्हें अपने परिवार मे, माना मे, मिला । उम गौर्य और बल का त्याग कर रहे है जो उन्हें अपने वश मे मिला । वे जानबझ कर एक मृत्य में प्रवेग कर रहे है ताकि इम तल पर मरकर पुनर्जन्म हो आन्तरिक अकेलेपन में, जहा कोई भी पूर्वज महाग देने को न हो । कोई भी अन्य पैतृक शक्नि उनकी अकेली आत्मा को मार्ग दिखाने या प्यार करने को न हो। अजान का महानिमिर हो और अकेली उनकी आत्मा हो । हजारों हिमक गत्रु हों और अकले गिशु जैमी आत्मा हो। इम तरह महावीर अपने पगक्रम को, अपने पौरप को ललकार रहे है। इम नगह वे वीर में महावीर हो रहे है। इस कारण बार-बार उनके शब्दों में तपस्या एक नकागत्मक (Negative), प्रनीप-गमन (Regression) अपने में ही घम जाना नही है । तान्या एक वीरता का कार्य है । एक सिंह का पगक्रम है । यह कितना कठिन है, यह वान केवल तभी जानी जा मानी है जब हमारी लोभायर्यानविन (Libido) मा में मम्बन्ध विच्छेद कर ले।
मा मे मम्बन्ध बिच्छेद कर लेने के बाद महावीर पुनः मा मे मानमिक पुनर्जन्म प्राप्त करने है। यही निर्वाण है। वे केवल-जान रूप उम माना को खोजने है जिसमे मिली शक्ति और प्रेम उन्हें बाधने नहीं वग्न मवन करने है।
दम प्रमग में हम नारी के प्रति महावीर के विचारो को और अच्छी नग्ह ममा मकने है । नारी का परित्याग महावीर मझान है क्योंकि उमकी कोमलता, उमका दुलार और मखद मार्य आत्मा को निश्चष्ट करने है । उसे आगे बढने में गेकने है । उममें यथार्थािन की कामना प्रबल हो जाती है । यह कामना अपने में झूठी, दुम्ब और निगगा की कारण है क्योकि जो दम मखद माये में बैठ जाने है काल उन्हें