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भी नही छोडना । बार-बार महावीर गौतम मे कहने है जागो क्योकि काल एक क्षण के लिये भी नुम्हें नहीं छोडना । नुम किनना ही नारी के मखद मायों में रहकर दम थिनि के गाग्वन होने की कामना करने रहो परन्तु स्थिनि पग्विनिन अवश्य हो जायेगी । अनः मां, प्रिया या अन्य किमी भी रूप में नारी द्वाग दिया गया प्रेम और कोमलना का आश्वामन अमन् है । काल उमे परिवर्तित कर देगा, उमम ममय के माथ वह वान नहीं रहेगी । महावीर के कहने के मायने यह नहीं कि तुम नारी के प्रति कर और विमग्न हो जाओ क्योंकि वह तुम्हें अठी कोमलता के माये दे रही है । महावीर दम वान मे परिचित है कि नारी जो कुछ मन्दग्नम् दे सकती है, दे रही है। इसके लिये वे उसके प्रति कोमल है। उनकी कोमलता इमी वान मे प्रगट है कि केवल जान के बाद वह मकल्प करने है कि वे प्रथम आहार एक नारी में ही लेंगे। वह तो हमें उम कट लॉछना या आरोप में बचा रहे है जो प्रत्येक पुरुष बाद में नारी पर आगेपिन करता है कि इसका प्रेम झठा था या इमने मझे बढन नहीं दिया । वे कह रहे है कि जान लो विडम्बना यह नही है कि नारी कुछ नही देती। विडम्बना यह है कि जो कुछ वह दे रही है वह इतना मघर और कोमल है कि आत्मा यदि थोडी भी मम्न हुई तो मो जायेगी और जीवन व्यर्थ हो जायेगा। वे नारी में हमेशा-हमेगा के लिये मम्बन्ध नोड लेने को नहीं कहने । वे कहते हैं कि इन मामारिक मम्बन्धों के महत्वहीन और अलमाने वाले मही रूप को ममझो। इसके पश्चात् इन कोमलनाओ में हीन घने वनो में अपनी अली आत्मा पर समम्त शक्तियों के उपद्रवी को अकेले महो । नव नुम्हारी आत्मा में घावक उत्पन्न होगा । आत्मा पगमी. पौरपमयी और स्वावलम्नी होगी। उमके पश्चात् जान का यज गा होगा । नव वही नारी शक्ति केवल-जान के रूप में आत्मा की मा होगी। इस प्रकार आत्मा का पुनर्जन्म नारी में ही होगा। परन्तु केवल-जान रूप में नारी के साये वैसे नहीं होंगे जो आत्मा को मुला मके । यह बात ध्यान देने
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