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सुन्दरम्महावीर का जीवन-दर्शन मुन्दरम् की प्राप्ति के लिये की गई
एक एक्मग्मादज़ है । प्रत्येक मनुष्य का चित्त मुन्दरम् में रमा हुआ है । या नो वह मुन्दर होना चाहना है या मुन्दर वस्तुओं को प्राप्त करना चाहता है। उसकी इम कामना का दमन महावीर नहीं मिखाने । यह नो हिमा होगी। महावीर मिग्वाने है वह मार्ग जिमके द्वाग मचमुच मन्दरहुआ जा मकना है। मौन्दर्य प्रमाधन और शारीरिक रख-रखाव हम मन्दर नहीं बनाने । माधारण मनप्य भी बहुत जल्दी जीवन में इम नथ्य को अनुभव मे जान जाने है । इसी कारण उच्च
और प्रगनिशील ममाज अत्यधिक मौन्दर्य प्रमाधनों को हीनता की नजर में देखते है । वे प्राकृतिक सुन्दरता को मच्चा मौन्दर्य मानते है। महावीर यही बनाने है कि यह प्राकृतिक सुन्दग्ना कमे प्राप्त की जा सकती है । गरीर में अनेक शक्तिएं है जो उम्र के माथ प्रकट होती जाती है। हर आने वाला दिन कुछ और नई गनियों को जन्म दे देता है हममें । इन शक्तियों को मर-नियत्रित रखना ही मुन्दरता को जन्म देना है । आज आदमी इन शक्तियों का दमन कर रहा है और चोरी छिपे इन्हें एक भद्दी अभिव्यक्ति दे रहा है । उमका जीवन मुन्दरता शून्य होता जा रहा है । महावीर इन्ही शक्तियों के मन्तुलन, उचित प्रयोग की बात कहते है। मुन्दरना (Austerity) मंयम में जन्म लेती है । एक कुमारी के मौन्दर्य मे सभी प्रभावित होते हैं क्योंकि उसकी शक्तियों ने अभी भोग नही जाना । अभी उमकी शक्तियां त्रिपुरा और प्रकृति के आर्केस्ट्रा में मुरबद्ध है । यौन के अनुभव के बाद यह आर्केस्ट्रा टूट जायेगा । एक मोहक नीद से जीवन अंगड़ाई लेकर उठ खड़ा होगा।
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