Book Title: Varddhaman Mahavira
Author(s): Nirmal Kumar Jain
Publisher: Nirmalkumar Jain

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Page 49
________________ हजार वर्ष पूर्व कालातीन पुरुष महावीर का हृदय इम अन्याय के प्रति क्रन्दन कर उठा और उसने माधारण व्यक्तियों की तरह इसके विरुद्ध आवाज न उठाकर मृध्म रूप में जन-जन को सम्बोधित किया और बताया कि नारी के मनम में एक पुरुप छिपा हुआ है और जिम दिन वह मिह उठेगा और आदर्श पुरुप होने का उपक्रम करेगा उम दिन नारी की ममपित होने की कामना फलीभत होगी। वह निर्वाण प्राप्त कर मकेगी। इसी तरह का संदेश बद्ध ने आनन्द को दिया जब गौतमी ५०० गनियों के माथ उनमे दीक्षा लेने आई थी। नारी का स्वभाव कृत्रिम करके उसके प्रति दयाभाव दिवाना ऐमा ही है जैसे किसी को अपाहिज करके उम पर दयाभाव दिग्वाना । ऐमा ही दयाभाव मनुष्य समाज नारी को देता आया है। महावीर ने कहा नारी को इम दया की जरूरत नहीं है। उमे अपना म्वरूप ममझने दो, उममे केवल ममर्पण की शक्ति को प्रवल करके उम अंधेगें में भटका दिया गया है। उममे उम पुरुष को जगने दो जिमकी पुकार पर यह ममपित होने वाली शक्ति पुनः लौटकर उम पुष्प में लीन होगी। नव वह भी उमी तरह निर्वाण को प्राप्त कर लेगी। कितनी विडम्बना है कि नारी को दाम बनाये रखने वालों ने महावीर के इन विचारों का भी शोपण कर लिया। वह युगातीत पुरुष जो हमेशा के लिये नारी को इन झठी मान्यताओं में मुक्त कराकर मत्य के पथ पर आरुद्ध करना चाहता था उसे ही उम विचार का जन्मदाता मान लिया जो नारी के लिये मोक्ष प्राप्नि असम्भव बताता है । परन्तु युग चेत रहा है। अधिक दिन तक लोलप व्यक्तियों की विचार-रचना नारी को बंधित नहीं रख सकेगी। यदि मन्प्य जाति ने समय मे महावीर के विचारों को अपने में स्थान न दिया और अपनी इस ऐतिहासिक भल को न मघागतो लिब मवमेण्ट तथा अन्य मार्गों से नारी विद्रोह करेगी। मनुष्य जाति की पूर्ण शक्ति दो विरोधी कम्पों में टूट जाएगी। देवासुर संग्राम इसी घग पर होगा । मनु और शतरूपा जिन्हें ब्रह्मा ने इस उद्देश्य से रचा था कि वे मनुष्य तत्वों को 38

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