________________
है। वह हैन का दाम है। वह नम्णी नहीं। महावीर कहते है उम नम्णी जमे हो जाओ जो अपने मौन्दर्य के प्रचण्ड प्रहार मे अनभिज्ञ है क्योंकि वह अपनं को अपने मौन्दयं मे अलग नही देग्वनी। वह द्वैनमयी नहीं है। यह नारुण्य बला जीवन में गाग्वन कग्ना आमान नहीं है । नागण्य तो कंवल एक ट्रेलरहं भव्य जीवन का।जोममय है वे उमे खोज लेने है।
उमी मन्दग्ना को प्राप्त करना मनाय जीवन का ध्येय है जो अन्नरजन्य है। प्रमायन र्गहन यही मौन्दर्य एक दिन गजा कफंच को एक भिग्वारिणी के प्रति भी विह्वल कर देना है। ये अनेक गक्तियां काल के आवेग है जो निग्न्नर मानमिक स्थिति में विक्षोभ पैदा कर रही है और हमें बदल रही है। जो दम दुर्जेय काल को जीत लेगा वही मन्दग्ना के उदगमको पा मकंगा। काल और क्षेत्र मे मीमित दम जगत की ममग्न मन्दग्ना Externalisation है । यह नकल है मुन्दरम् की। काल यह नकल करता है हमे भलावे में डालने को। यह नकल हीगरीर की नम्णाई है । यह प्रणाम गाग्वन मन्य को है काल का। विन इम प्रणाम के काल अपना अभिनय पृथ्वी मच पर नहीं दिग्वा मक्ता । यह अभिनय गाग्त्र की परम्पग है। अनशामन है । परन्तु काल के अन्य ममम्त म्प अमन्दर है। नारण्य को मन्दर मानकर जो लिग्न हो गये वे जीवनभर तणियों में ही उमे खोजते रहेंगे और वह उन्हें नहीं मिलेगा। तारुण्य ढलता रहेगा। चाह कर भी मन के बन्धन जल्दी-जन्दी खलने बधने रहेंगे । दुखो का आरव होगा । महावीर कहने है नामण्य की बेबाक़ी मे जिम मन्दरम् के तुमने दर्शन किये उमका उद्गम नारण्य नहीं है। उमका उद्गम काल के परे है । तुम्हारी आत्मा को प्रमाद तजना होगा । कालानीन मन्दरम् मे पुनर्जन्म प्राप्त करना होगा। यही चरम उत्कर्ष है।
शारीरिक गन्दरता का उद्गम तपम है। उम नप को करने से आत्मा परिष्कृत होती है । उस पर जमे पदार्थ कणो का त्याग आवश्यक है।