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स्थायी करें, मानव बद्धि, मानव आदर्श लेकर एगवद और आनन्दमय संमार की रचना करें, वे ही मन और गतम्मा एक दुसरे के नात्र हो जाएंगें। आज के यग मंदर्भ में महावीर के विचार अमन मान्य है।
आधुनिक नारी की ममम्या का निदान महावीर के विचारों में है। यदि हम यह चाहते है कि यह महान नागे-गरिन, गुण-गग्नि की सहायक बने और पूर्ण मनग्य जानि एकाग्र होकर विभाग मार्ग पर बन सके तो ज़रूरी है कि महावीर के विचारों के प्रकार में हम अपनी ऐतिहामिक भलों को मघारें । नारी को निर्भय और निःग्वार्थ होकर उमका मही स्वरूप ममझने में मदद करे। उग बनाये कि नर मानगिक तल पर पुरुप की पूरक नहीं है। उग नल पर पुरुष और नारी में अन्नर नहीं है। वह उमी तरह मोक्ष प्राप्त कर मकती है जिम नग गरप।
एबात ध्यान देने की है कि महावीर नागे आमा नहीं है। उन्होंने नारी गक्ति को कोई आध्यात्मिक महत्व नहीं दिया । लिये उन्हें कभी यह ज़रूरत नहीं पड़ी कि वे नारी की निन्दा करे । उनका दर्शन नारीत्व और पौरुप को कण्टील ममाना है जिमकी विभिन्नता से आत्मा का वह प्रकाग विभिन्न नहीं हो जाता जो दोनों का नीलों में ममान रूप मे जल रहा है। नारीत्व और पौम्प मार्गाग्क भिन्नताएं हैं। इनमे मनोवैज्ञानिक भिन्नताएं भी उत्पन्न हो जाती है । नारी की स्थिति मनप्य ममाज में गोपिन की रही है परन्तु यह नहीं भूलना है कि उमकी स्थिति मोहिनी और मोहिना की भी है । मनग्य ममाज ने नारी को जो मनोवैज्ञानिक चादर दी है वह बहुन उलझी हुई और झूठी है । नारी को उमका त्याग करना होगा यदि वह आत्मा का विहान चाहती है।
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