Book Title: Varddhaman Mahavira
Author(s): Nirmal Kumar Jain
Publisher: Nirmalkumar Jain

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Page 34
________________ किसी लिंग्वाफोन पर बोल रह थे । मनुष्य के भीतर ही अनेन पशु, प्रेत. राक्षमी शक्तिया है जो उसकी मानवीय शक्ति को बहनानी है। भगवान महावीर विचारो के तल पर उपदेश नही दे रहे थे बल्कि उन्होंने वह विलक्षणता प्राप्त कर ली थी जहा उनके शब्द सीधे न शक्तियो से वार्तालाप कर रहे थे और उन्हें मही दिशा की ओर प्रेरित कर सकते थे । यही महावीर के विचारो का सार है क्योंकि उन्होंने यही उपदेश दिया कि विचारों के परिष्कार में ही लग जाने मे मनाय वा जीवन बेकार हो जाता है । उसे सम्यक्-चरित्र उपजाना है और चरित्र शक्तियों का I सम्यक् मगटन है । विचारो को इस रूप में सरल और स्पष्ट करना आवश्यक है कि वे मीधे कर्म शक्तियो को मर्गाटन और मुव्यवस्थित कर सके । I फ्रायड के मनोवैज्ञानिक विश्लेषण के उपरान्त प्रथम बार व्यापक रूप से मनुष्य जाति के मामने एक विषम समस्या खड़ी हुई -- मनग्य ने जाना कि उसके विचार चाहे कितने भी शद्ध और पवित्र हो उसके मन के कुछ कोने है जहा उसके बिना जाने छोटी-: वानं, घटनायें और इच्छाए छपकर, घुटकर, भयानक, परोक्ष, शक्तियों में बदल जाती है । ये कभी तो उसे दुष्कर्मो के लिये प्रत्यक्ष रूप में प्रेरित करनी है और कभी उसमें अनेक तरह की पीडाओं और रोगों में बदल जाती है । उसे स्वय मालूम नही होता कि वह इतना विघटित, परेशान, अनिश्चित, सदिग्ध और दूसरो के लिये एक समस्या वयो बना हुआ है। उससे भी अधिक भयानक वात जो मनग्य ने जानी वह यह थी कि मनग्य के कर्म उसके विचारों पर निर्भर नहीं करते बल्कि इस मानसिक दावित पर निर्भर करते है जो अधिकाशन विघटित, दुराग्रही और दुष्ट प्रवृत्तियों भरी है । इम आविवार ने मनप्य में बहुत कुछ छीन लिया। फ्रायड की इस खोज के बाद साहित्य में में आदर्शवाद मिटना शरू हो गया था । धीरे-धीरे वह आदर्शवाद व्यवहाग्विजीवन मे भी मिट गया। आज के प्रगतिशील विचारक जैसे सार्त्र, कैमम आदि अस्तित्ववादी यह स्पष्ट 23

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