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के बीच उलझकर रुक जाती है । यह अनुभव हम सबका है। वे जो कहते है कि महावीर पलायन कर गये, घर छोड़कर भाग गये वे भूल कर रहे है क्योंकि पलायन महावीर नही कर गये पलायन तो हर व्यक्ति अपने जीवन में कर रहा है । जैसे ही जीवनशक्ति उलझी वह उमका त्यागकर मम्निष्क के तल पर आ जाता है जो अपेक्षाकृत मुलझा हुआ है। महावीर नो यह कहते है कि पलायन करना कायरता है। जीवनगक्ति का त्याग कर मस्तिष्क के तल पर चले जाना कायरता है। उममे जीवन का कल्याण नहीं होता। जीवन का कल्याण तभी होता है जब हम जीवन प्रवाह के तल पर, कर्मगक्तियों के तल पर जीयें जहां यह विघटित और उलझा हुआ ममाज रोजाना उलझनें
और घटन पैदा कर रहा है । मनुष्य उनके बीच रहकर उनमे मुक्ति का मार्ग खोजे। दूमरी उपमा पर ध्यान दें।एक ममद्र है जिममें जीवनशक्ति एक लहर की तरह पड़ी है । इमे अनेक विरोधी शक्तिएं आकर घेर लेनी है । वे अनेकों लहरों की ही शक्ल में है। अनोखा खेल यह खेलना है कि इन लहरों के बीच भी वह लहर बिन टे चलनी रहे और बड़ी होती रहे । महावीर कहते है कि जीवनशक्ति के तल पर मुक्ति प्राप्त करने का अनोखा खेल खेलना है । अहिंमा, अपरिग्रह, क्रोधहीनता, प्रेम, क्षमा आदि को वे इमलिये महत्व देने है कि हम कठिन उद्देश्य की पूर्ति में यही शस्त्र सहायक सिद्ध होंगे। उममे अलग इनका अपने मे कोई मूल्य नहीं है । अहिमा संघर्ष से भागना नहीं है बल्कि मफल संघर्ष करने का तरीका है।
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