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है और इसकी भापा विचारों की भापा नहीं है । पूर्ण ज्ञान पूर्वजन्म में हो लेने के पश्चात् भी महावीर को एक जन्म और लेना पड़ता है। इम नाव को किनारे पर छोड जाने के लिये गूंगी और अमभ्य कर्मगक्तियों के नल पर भी वे मक्नि का आव्हान करन है । पंडिन ईश्वर चन्द्र विद्यामागर में एक बार किमी मां ने कहा कि मेरे लड़के को मिठाई वाने की वहुन आदन है उसे छुड़वा दो। उन्होंने कहा अच्छा। छः माह बाद उमे मेरे पाम लाना। छः माह बाद वह लड़का उनके पाम लाया गया। उन्होंने कहा कि तुम मिठाई बहुत खाते हो मन खाया करो और उमने मिठाई खाना छोड़ दिया। लोगों ने उनमें कहा कि मामूली मी वान कहने के लिये तुमने छः माह क्यों लिये? उन्होंने कहा कि छ: माह पहले में स्वयं बहुन मिठाई खाना था उम ममय उम लड़के को उपदेश देना नो वह निष्फल होता इम बीच मैने अभ्याम करके मिठाई छोड दी। दम छोटी मी कहानी में भी वही वान है । विचारों के नल पर एक मघर्प है जो एक मच्चा विद्यार्थी निप्पक्ष और नि:स्वार्थ निर्भय ज्ञान अर्जनमेजीन लेता है परन्तु वह पर्याप्त नहीं है । एक और म्वतंत्रता है जो उमे जीतनी है वह है जीवन शक्ति के नल की। अनेकों दुष्ट इच्छाएं, प्रवृत्निय और प्रेग्णाए हमारे भीतर गेज उठ रही है । जब तक हम इन पर विजय नही पा लेने तब तक हम मनुष्यता का दीप पृथ्वी पर नही जला मकने । ममम्त ज्ञान व्यर्थ हो जाएगा । इमके जीनने का एकमात्र मार्ग है विनय और मम्यक् चरित्र । यह कोई बाहर मे लादा हुआ अनुशामन नहीं है बल्कि स्वयं अनुभव है। भगवान महावीर यह कहते है कि अनुभव जो हमे मिग्वा रहा है रोजाना के जीवन की घटनाओं में उममे हम लाभ नहीं उठा रहे है। इस कारण हम वही रुक गये है । हमें वीरता और माहम के साथ अपने अनुभवों को एकमात्र प्रकाश मानकर पग-२ पर शान्ति और धर्य के माथ मनन करके बढना है । जव कर्मगक्ति ऐमा करेगी तो वह स्वयं विकमिन होगी। उसका स्वयं का तप उमके विकास का कारण होगा और यह उमकी
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