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निषेध नहीं थे, विपरीतों के ममन्वय थे जिममे विपरीत शेष हो जाय
और जीवन एक मम्बद्ध पूर्णना वनकर, एक ही प्रवाह बनकर उद्घटित हो। उनका उद्देश्य था कि व्यवहारिक तल पर मनुष्य में (कन्टाड्रिक्शन) विरोध न रहे। उन्होंने जीवन प्रवाह को एकमूत्र में जगाना चाहा था। इमलिये वह मर्पिन होने वाले और जिमके प्रति समर्पण होना है इनके द्वैन को भी नहीं रहने देना चाहते थे। वे जानने थे कि इम प्रकार मनुष्य का विकास सम्भव नहीं है । यह ठीक भी था । यदि में किसी आदर्श या देवना को ममपित होता हूं नो में नि:मंदेह उमसे अलग हूं। इम स्थिति में उमको कभी भी ममपिन नहीं हो सकता। में केवल उमकी कल्पनाकृत आकृति, इमेज को मर्पित हंगा जो मेरे मन में बनी है। वह व्यक्ति क्या है? जरूरी नहीं कि वह उम इमेज जमा ही हो। महावीर का कहना है कि यह इमेज का द्वैन ग्वा क्यों जाय? क्यों न में स्वयं में वह व्यक्ति बन जाऊं जिमको मुझे ममपिन होना है? उन्होंने प्रेम की उम पगकाष्ठा को छुआ है जहां श्याम गधा हो जाने हैं और गधा ग्याम हो जाती है । इम नग्ह आत्ममात हो जाने पर हम जिमे ममपित होंगे वह कलाकृत या इमेज नहीं होगा बल्कि वह वास्तव में वह पुरुष होगा जिमको हम मर्पित होना चाहते हैं। महावीर ने यह जाना था कि मनुष्य में पुरुष और मपिन होने वाली नारी ये दोनों ही तत्व विद्यमान हैं। उन्होंने इमलिये इतना कहा कि इस पुरुष तत्व को उम आदर्श पुरुप से आत्ममात कर दो जिसे तुम ममपित होना चाहने हो। इमका विकास उसी दिशा में होगा जिम दिशा में वह चलकर आदर्श पुरुप बना, विकसित हुआ औरतीर्थकर बना। इस तरह तुम्हाग पुरुष तत्व स्वयं पूर्णतया विकमित हो जाय और फिर तुम्हाग नारी तत्व उमे समर्पित हो जाय तो द्वैत का अन्त हो जायगा । यह मनुष्य के मानसिक क्षोभ का अन्त होगा। यह जितना विरोध, क्षोभ और विद्रोह उसके मानसिक तल को जला रहा है इसका अन्त करने का एकमात्र उपाय यही है कि इसमें निहित एकता तत्व को जगाया जाय। जब वह